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________________ अनेकान्त 60/3 7. धर्मसंग्रह श्रावकाचार 30 से 32 तदर्थमेव क्रोधादिकषाय आत्मसंस्कारानन्तरं रहितानन्तज्ञानादिगुण-लक्षणपरमात्मपदार्थे स्थित्वा रागादिविकल्पानां सम्यग्लेखनं तनुकरणं भावसल्लेखना, तदर्थ कायक्लेशानुष्ठानं द्रव्यसल्लेखना । [ पचास्तिकाय टीका तात्पर्यवृत्ति 176 / 253/17] 11. धवला 1/1,1,1/24/1 12. सागार धर्मामृत, अध्याय 8, श्लोक 11 13. धर्मसगह श्रावकाचार श्लोक - 42 8. सागारधर्मामृत, अध्याय आठ श्लोक 22 9. अन्धो मदान्धैः प्रायेण कषायाः सन्ति दुर्जयाः । ये तु स्वांगान्तरज्ञानात्तान् जयन्ति ते ।। सा. धर्मामृत 8/23 10. आद्येषु त्रिषु संहननेषु अन्यतमसंहननः शुभसंस्थानोऽभेद्यधृतिकवचो जितकरणो जितनिद्रो नितरा शूरः । 14. प्रस्थितः स्थानतस्तीर्थे म्रियते यद्यवान्तरे । स्यादेवाऽऽराधकस्तद्वि भावना भवनाशिनी ।। धर्मसंग्रह श्रावकाचार, सप्तम अध्याय, श्लोक सं. 42 1 31 19. सागारधर्मामृत, अध्याय आठ, श्लोक. स. 16 20. नृपस्येव यतेर्धर्मो चिरमभ्यस्तिनोडस्त्रवत् । सुधीव स्खलतो मृत्यौ स्वार्थऽभ्रंशोऽयशः कटुः । । 15. प्रासुक भूमि शिला पर ए, नरेसुआ, कीजे संथारा सार । कठिण कोमल समता भावि ए, नरेसुआ, कीजे नहीं खेद विकार ।। पद्मकृत श्रावकाचार, दोहा सं. 67 16. यदापवादिकं प्रोक्तमन्यदा जिनपैः स्त्रियः । पुवद्भण्यते प्रान्ते परित्यक्तोपथे किल । । धर्मसंग्रह श्रावकाचार सप्तम अध्याय, श्लो. 50 17. सागारधर्मामृत, अष्टम अध्याय, श्लोक 53 18. रूजाद्यपेक्षया वाडम्भः सत्समाधौ विकल्पयेत् । मुञ्चेत्तदपि चासन्न मृत्युः शक्तिक्षये भृशम् ।। धर्मसंग्रहश्रावकाचार भगवती आराधना
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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