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________________ अनेकान्त 60/3 23 को स्पष्ट करते हुये उन्होंने लिखा है कि मृशापर्वतकवशात् कदलीघातवत्सकृत् । विरमत्यायुषि प्रायमविचारं समाचरेत् ।। अर्थात् अगाढ़ अपमृत्यु के कारणवश कदली घात के समान एक साथ आयु के नाश की उपस्थिति होने पर साधक विचार रहित अर्थात् समाधि के योग्य स्थान का विचार न करके भक्तप्रत्याख्यान को स्वीकार करे। सल्लेखना हेतु योग्य स्थान को इङ्गित करते हुए धर्मसंग्रह श्रावकाचार में कहा है कि संन्यासार्थी ज्ञकल्याणस्थानमत्यन्तपावनम्। आश्रयेतु तदप्राप्तौ योग्यं चैत्यालयादिकम् ।। अर्थात् संन्यास (सल्लेखना) के अभिलाषी पुरुषों को चाहिए कि जिस स्थान में जिन भगवान का ज्ञान कल्याणक हुआ है। ऐसे पवित्र स्थान का आश्रय ग्रहण करें और यदि ऐसे स्थानों की कारणान्तरों से प्राप्ति न हो सके तो जिन मन्दिरादि योग्य स्थानों का आश्रय लेना चाहिए। कदाचित् साधक द्वारा स्थान की खोज करते हुए यदि रास्ते में भी मरण हो जाये तो भी वह श्रेष्ठ माना गया है। इस सम्बन्ध में पं. मेधावी ने अपने धर्मसंग्रह में कहा है कि सल्लेखना बद्धि से किसी तीर्थ स्थान को यदि गमन किया हो और वहाँ तक पहुँचने से पहले ही यदि मृत्यु हो जाय तो भी वह आराधक है, क्योंकि समाधिमरण के लिए की हुई भावना भी संसार का नाश करने वाली है। पद्म कृत श्रावकाचार में मरण स्थान के लिये प्रासुक शिला को उपयुक्त कहा है।15 7. स्त्रियों के लिए निर्देश वैसे तो स्त्रियों के लिए जिनेन्द्र भगवान् ने अपवादलिङ्ग (सवस्त्र
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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