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अनेकान्त 60/3
लेना उनका परम लक्ष्य था। वास्तव में आदिपुराण में धर्म, अर्थ एवं काम के समुचित सन्तुलन की प्राप्ति होती है।
सन्दर्भ-सूची :
1. आ. पूज्यपाद- सर्वार्थसिद्धि, 3/27, पृ. 232 2. आदिपुराण 16/179 3. वही 39/143 4. वही 16/181 5. वही 16/184 6. वही 16/181 7. वही 3/179-182 8. वही 3/186-187 9. वही 35/37 10. वही 17/157 11. वही 4/72 12. वही 5/104 13. वही 4/72, 5/258-259 14. वही 4/71 15. वही 17/24 16. वही 35/40 17. वही 3/185 18. वही 35/35-36 19. वही 28/130 20. वही 26/120-121, 35/29-30 21. वही 12/244 22. वही 35/30 23. वही 42/176 24. वही 42/177-178 25. वही 16/181 26. वही 42/152-160 27. वही 16/182 28. वही 41/139 29. वही 38/35 “वार्ता विशुद्धवृत्तया स्यात् कृष्यादीनामनुष्ठिति।" 30. वही 42/150-171 31. वही 42/139-167 32. वही 42/173, उत्तरपुराण 71/52-54 33. वही 16/182 34. वही, “चित्रकलापत्रच्छेदादि बहुधा स्मृतम्।” 35. वही, 16/46-67 36. वही, 37/149-162, 177 37. वही, त्रिलोकसार, गा. 682 38. प. कैलाशचन्द- भगवान ऋभदेव, प्राक्कथन, पृ. 2 39. आदिपुराण 16/187,-242 40. वही, 16/164-165 41. वही, 16/166 42. वही 16/167 43. वही 16/169-170 44. वही 16/245-246 45. वही 16/102-104 46. वही 17/76-77 47. वही 48. वही 42/177-178 49. वही 41/158,42/14, तथा धर्मादिष्टार्थसपत्तिः “5/15, न्यायैकजीविकाः” 18/124 50. वही 20/159 "ब्रह्मचर्येकतानता।" 20/164 "स्त्रीकथालोकससर्गप्राग्रतस्मृतयोजनाः। वा वृप्य रसेनामा चतुर्थव्रतभावना।।" 51. वही 2/23, 20/160, 165 52. वही 42/168, 169 53. वही 42/13
- पूर्व रीडर एवं अध्यक्ष-अर्थशास्त्र विभाग
दि. जैन कालिज, बड़ौत 180/12, पटेल नगर, मु.नगर