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________________ 128 अनेकान्त 60/1-2 उपदेष्टा बनकर हमारे समक्ष उपस्थित होती है। 'कौन बड़ा' में भाग्य और पुरुषार्थ को एक ही सिक्के के दो पहलुओं की तरह-एक दूसरे का पूरक सिद्ध किया गया है तथा भाग्यवादियों को पुरुषार्थ की प्रेरणा दी गई है। जिस प्रकार एक चक्र से रथ की गति संभव नहीं है, उसी प्रकार भाग्य या पुरुषार्थ में किसी एक से काम नहीं चल सकता है। दूसरों की हत्या करके अपना भला चाहने वालों की कैसी दशा होती है, यह बात 'नरक का द्वार' कहानी से आसानी से जानी जा सकती है। कहानी 'साधु कौन' में कहा गया है कि चमत्कार साधु की कसौटी नहीं है अपितु समता, परोपकार, स्वार्थत्याग आदि गुणों के आधार पर साधु को परखना चाहिए। खदिरसार भील के तृत्तान्त पर आश्रित कहानी 'गाड़ी में ब्रेक जीवन में संयम' में बताया गया है कि एक छोटा नियम भी व्यक्ति को महान् बना सकता है। 'मित्र हो तो ऐसा' कहानी का कथ्य है कि मित्र वही है जो एक दूसरे को सन्मार्ग पर लगाने के लिए सम्बोधे। ब्रह्मचर्य के महत्त्व को प्रकट करती है कहानी 'व्रतों में महान् कौन' तथा त्यागपूर्वक ही जीवन चल सकता है। भाव को स्पष्ट करती है कहानी 'त्याग से की काम बनता है'। कहानी '88 का चक्कर' से स्पष्ट होता है कि आशाओं रूपी गड्ढा कभी भरता नहीं है। आशायें तो भस्मासुर के मुख की तरह आगे-आगे बढ़ती ही जाती हैं। अन्तिम कहानी 'माता बहिन सुता पहचानो' उन मनचलों को सन्मार्ग प्रदर्शन का काम करती है जो मौका मिलते ही महिलाओं पर फबतियाँ कसने में माहिर हैं। शेष सभी कहानियों में भी लेखक अपने लक्ष्य में सफल रहा है। कुल मिलाकर लेखक अपने भावों को पाठकों तक संप्रेषित करने में समर्थ रहा है। इन कहानियाके की भाषा सरस, सरल, सर्वजनसंवेध एवं कथ्यानुरूप है तथा शैली अत्यन्त प्रभावी है। विश्वास है कि लेखक की लेखनी से ऐसे ही अन्य अनेक कहानी-संकलन प्रसूत होंगे, जो भूली मानवता को राहा दिखा सकेंगे। इस उपयोगी कहानी संकलन की प्रस्तुति के लिए लेखक एवं प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। समीक्षक- डॉ० जयकुमार जैन ___ अध्यक्ष- संस्कृत विभाग एस०डी० कॉलेज, मुजफ्फरनगर-251001
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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