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अनेकान्त 60/1-2
पाश्वभ्युदय की रचना की थी किन्तु इस चरित को अत्यंत संक्षेप में वर्णित किया है । समग्र जीवन की कथावस्तु यहां नहीं आ पायी है । इसमें 4 सर्ग है तथा 364 श्लोक हैं। आचार्य जिनसेन के समय मेघदूत का क्या स्वरूप था, यह जानने के लिये पार्श्वभ्युदय का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें पार्श्वनाथ के अनेक जन्म-जन्मान्तरों का समावेश नहीं हो सका है। अरविन्द द्वारा बहिष्कृत कमठ सिंधु तट पर जाकर तपस्या करने लगता है । कमठ का छोटा भाई मरुभूति भातृ प्रेम के कारण इसके पास जाता है । किन्तु क्रोधवश कमठ उसको मार डालता है। अनेक जन्मों तक यही चलता रहता है । अंत में मरुभूति पार्श्वनाथ बनते हैं । कमठ उनकी तपस्या में अनेक उपसर्ग पहुँचाता है । अंत में कमठ रूप शम्बर क्षमा मांगता है । इस काव्य में शांत रस की पराकाष्ठा दिखाई देती है । "
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पार्श्वनाथ चरित - संस्कृत भाषा में रचित माणिक्य चन्द्र सूरि ने 12 वीं शताब्दी में लिखा है । यह 10 सर्गात्मक है । अनेक रसों के साथ मुख्य रस शांत ही दिखाई देता है। काव्य अनुष्टुप छंद में लिखा गया है । सर्ग के अंत में छंद परिवर्तन किये गये हैं । उनमें शार्दूलविक्रीडित, मालिनी आदि छंद हैं। यह काव्य अभी तक अप्रकाशित है। इसकी ताड़पत्रीय शांतिनाथ भण्डार खम्भात में हैं ।' अप्रकाशित होने के कारण कथावस्तु के बारे में जानकारी नहीं है ।
पार्श्वनाथ चरित - इस महाकाव्य को 13वीं शताब्दी में लिखा है । प्रथम से तृतीय सर्ग तक तीन भवों का वर्णन चार सर्ग तक जीवनचर्या, विहार, दीक्षा, केवल ज्ञान, निर्वाण प्राप्ति का वर्णन किया गया है । सर्गान्त में इसे महाकाव्य कहा गया है। यह काव्य वैराग्य भावना से ओत-प्रोत है । इसलिये शांत रस प्रधान है। अनुष्टुप छंद में रचना की गई है। कुछ लोग इसे पौराणिक काव्य भी मानते हैं, क्योंकि पुराण के अनुरूप अलौकिक एवं चमत्कारिक घटनाएं प्रस्तुत काव्य में दी गई हैं ।
पार्श्वनाथ पुराण - यह 23 सर्गों से युक्त है । सकल कीर्ति ने इसे