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________________ अनेकान्त 59/3-4 100 आगे उन्होंने लिखा है कि- “कुषाणकाल का एक आयागपट्ट मिला है, उसमें भी इस स्तूप को देवनिर्मित लिखा है। पं. बलभद्र जैन के उपर्युक्त कथन का समर्थन अमलानन्द घोष ने भी किया है। ___ प्रो. रमेशचन्द्र शर्मा ने एक मान्यता के आधार पर लिखा है कि सर्वप्रथम एक ही मूल स्तूप था, कालान्तर में उनकी सख्या 5 हुई तदनन्तर छोटे-छोटे 527 स्तूप बन गये, जिनकी पूजा 17वीं शताब्दी तक होती रही। 1583 ई. में साह टोडर द्वारा 514 स्तूपों की प्रतिष्ठा की गई।23 ___ भगवान् सुपार्श्वनाथ के सेवक यक्ष का नाम परनन्दी और यक्षिणी का नाम काली है।24 सुपार्श्वनाथ की प्राचीन मूर्तियाँ : ____ श्री गोकुलचन्द दिगम्बर जैन मन्दिर ग्वालियर (म.प्र.) में भगवान् सुपार्श्वनाथ की एक मूर्ति विराजमान है, जिसकी प्रतिष्ठा वि.स. 1125 में हुई भी।25 इसी प्रकार बदनावर से प्राप्त भगवान सुपार्श्वनाथ की एक प्रतिमा जयसिंहपुरा पुरातत्त्व संग्रहालय उज्जैन में मूर्ति क्रमाङ्क 165 में उपलब्ध है। इसकी प्रतिष्ठा वि.स. 1222 में हुई थी।25 सुपार्श्वनाथ की जन्मभूमि काशी : भगवान् सुपार्श्वनाथ की जन्मभूमि काशी के एक मुहल्ले भदैनी में है। भदैनी भद्रावनि अथवा भद्रवन का भ्रष्ट रूप है। भदैनी में भगवान् सुपाश्वर्वनाथ के कुल तीन मन्दिर हैं, जिनमें एक श्वेताम्बर मन्दिर है और शेष दो दिगम्बर मन्दिर। दोनों दिगम्बर मन्दिरों में से एक मन्दिर छेदीलाल के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है और दूसरा मन्दिर बाबू सुबोधकुमार जैन आरा (बिहार) के पूर्वजों द्वारा निर्मित है। यहीं पूज्य क्षुल्लक गणेश प्रसाद वर्णी द्वारा स्थापित श्री स्याद्वाद महाविद्यालय है, जहाँ से सैकड़ों जैन विद्वान तैयार हुये हैं। यह विद्यालय अपने स्थापना
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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