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अनेकान्त 59 / 3-4
प्रभास कूट की वन्दना करने से भव्य जीवों को 32 करोड़ प्रोषधोपवास से प्राप्त होने वाले फल की प्राप्ति होती है । "
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तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ से एक हजार करोड़ सागरोपम में से 41943 हजार और साढ़े आठ माह कम कर देने पर जितना समय शेष रहता है उतने समय पूर्व तीर्थकर सुपार्श्वनाथ का निर्वाण हुआ था | 10
तीर्थङ्कर सुपार्श्व विषयक साहित्य :
भगवान् सुपार्श्वनाथ के सन्दर्भ में सम्प्रति तीन प्रकार का साहित्य उपलब्ध हैं- काव्य साहित्य, 2. स्तुति साहित्य और पूजा साहित्य । प्रथम काव्य साहित्य भगवान् के पूर्वभव सहित सम्पूर्ण जीवन-चरित पर प्रकाश डालता है। द्वितीय स्तुति - साहित्य में भगवान् सुपार्श्वनाथ की स्तुति की गई है और तृतीय पूजा साहित्य में भगवान् सुपार्श्वनाथ के कतिपय गुणों का विवेचन किया गया है। इसके अतिरिक्त कुछ स्फुट रचनाएँ भी है, जिनमें चौबीस तीर्थङ्करों को नमस्कार करने के क्रम में सप्तम तीर्थङ्कर भगवान् सुपार्श्वनाथ को भी नमस्कार किया गया है।
विस्तृत विवेचन इस प्रकार है
काव्य साहित्य :
जिनरत्न कोश में सुपार्श्व चरित के नाम से सम्बद्ध तीन चरित - काव्यों का उल्लेख किया गया है । "
सुपासनाहचरिय- विक्रम की बारहवीं शती के अन्त ( वि.सं. 1199 ) में हर्षपुरीय गच्छ के श्री हेमचन्द्रसूरि के शिष्य श्री लक्ष्मणगणि द्वारा प्राकृत भाषा में निबद्ध सुपासनाहचरिय एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं उच्चकोटि की रचना है। इसमें लगभग आठ हजार गाथाओं में सप्तम तीर्थङ्कर भगवान् सुपार्श्वनाथ का चरित विस्तार से दिया गया है। यह ग्रन्थ तीन प्रस्तावों में विभक्त है।
इसके प्रथम प्रस्ताव में सुपार्श्वनाथ के पूर्वभवों का वर्णन है और