SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 59/3-4 से दोषों को लाता है। शरीर दुःख का कारण है। उसको छोड़ने का उपाय है- इसको क्रम से कृश करना। बाह्य तप से शरीर कृश होता है। बाह्य तप से शरीर रस और सुख में अप्रतिबद्ध यानी अनासक्त होता है। बिना संक्लेश परिणामों के दुःख सहने से कर्मो की निर्जरा होती है और ध्यान में (एकाग्र) होता है। बाह्य तप से आत्मा, कुल, गण, शिष्य परम्परा शोभित होती है। आलस्य छूट जाता है शरीर में हल्कापन आता है। जिससे स्वाध्याय व ध्यान बिना कष्ट के हो जाते हैं। इस प्रकार उद्गम, उत्पादन और एषणा दोष से रहित भोजन और पान से तथा परिमित, लघु, रस रहित, रूक्ष भोजन पान से यतिगण बाह्य तप की साधना करते हैं। बाह्य तप से मरण काल में जो सर्व आहार का त्याग करना होता है, उसका अभ्यास हाता है। अनशन आदि तप से निद्रा जय होती है, ध्यान दृढ़ होता है, असंयम करने वाले मन का घात होता है जिससे स्वाध्याय तप में विघ्न नहीं होता है। अधिक भोजन करने वाला- स्वाध्याय कैसे कर सकता है? सुख में राग को त्यागना और भूख प्यास के कष्ट में संक्लेश न होने देना तथा क्रम से आहार को कम करते हुए शरीर को कृश करना तथा वृत्तिपरिसंख्यान के द्वारा आहार को संकुचित करते हुए सल्लेखना को आगे बढ़ाता है। तत्वार्थसूत्र के अनुसार- "मारणांतिकी सल्लेखना जोषिता। अर्थात् व्रती मुनि। या गृहस्थ मरण के समय होने वाली सल्लेखना को प्रीतिपूर्वक सेवन करता है। कषाय- आभ्यन्तर सल्लेखना है। और काय बाह्य सल्लेखना है। शरीर का साधन भोजन है जिसे क्रमशः घटाने से शरीर कृश होता है तथा कषाय के कारणों से बचने से कषाय घटती है। शरीर सुखा डाला और क्रोधादि कषायें नहीं घटी, तो शरीर का शोषण व्यर्थ है। सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में एक प्रतीक उदाहरण दिया गया है- यदि व्यापारी के किसी कारण वश व्यापार केन्द्र में आग लग जाये तो पहिले उसे बुझाकर वह व्यापार केन्द्र के भवन की रक्षा करता है, किन्तु यदि उसका
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy