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अनेकान्त 59/3-4
तोरण स्तम्भ ही अवशिष्ट हैं। इस तोरण पर संवत् 1035 का शिलालेख है जिसे सर्वप्रथम ढाकी द्वारा प्रकाश में लाया गया। इससे पहले भण्डारकर ने इसका समय पढ़ने में भूल की थी और 1075 पढ़ा था।
ओसियां के महावीर मंदिर के विभिन्न भागों का सही समय बहुत समय से विवादास्पद है। उपकेशगच्छ पट्टावली इसकी मूर्ति का समय पाँचवीं शताब्दी स्वीकार करती है। ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक प्रमाणों के आधार पर ओसियां आठवीं शता. से पहले अस्तित्व में नहीं आया था। “कक्सूरी" ने अपने “नाभीनन्दन जीर्णोद्धार" में मंदिर का 961 में पाये जाने का उल्लेख किया है और यह कथन “ओसवाल उत्पत्ति" के समानान्तर है। भण्डारकर के निष्कर्ष के अनुसार यह मंदिर अन्य प्राचीन जैन मंदिरों के समान दोनों दिशाओं तथा पीछे से उसके सहायक मंदिरों द्वारा घिरा हुआ है, जिसका पता उनकी शैली से चलता है, जो कि मंदिर के समकालीन नहीं है और 10वीं शताब्दी के प्रतीत होते हैं। सम्भवतः उनका निर्माण तब हुआ जब जिनदत्त द्वारा नालपंडप का पुनर्निर्माण किया गया। पर्सी ब्राउन के अनुसार यह मंदिर सर्वप्रथम आठवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में बनवाया गया था और 10वीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण किया गया था, जो मंदिर के विभिन्न भागों के स्थापत्य को देखने से पता चलता है।'
घानेराव का महावीर मंदिर एक महत्वपूर्ण जैन तीर्थ है। यह मंदिर उत्तरमुखी है। इस मंदिर का मूल प्रासाद गूढ़ मण्डप से तथा मुखमण्डप से जुड़ा है। मुखमण्डप के पीछे रंगमण्डप है, जिसके शीर्ष पर प्राकार है। मंदिर के गर्भगृह की रचना शैली सरल है, जिसमें केवल दो अवयव हैं - भद्र और कर्ण। प्रदक्षिणापथ के तीन ओर बनाये गये भद्र-प्रक्षेपों को गूढ़मण्डप की भित्तियों की भाँति सुन्दर झरोखों द्वारा सजाया गया है, जिनसे प्रकाश प्रस्फुटित होता है। मंदिर की रचना जाड्य कुंभ के पीठ-बंधों, कलश तथा सादी पट्टिकाओं को आधार प्रदान करने वाली युगल भित्तियों द्वारा हुई है। पीठ के ऊपर सामान्य रूप से पाये जाने वाले वेदी-बंध स्थित हैं, जो सादा होते हुए भी आकर्षक हैं। प्रत्येक झरोखे