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________________ 116 अनेकान्त 59/1-2 में किसी ऐतिहासिक सन्दर्भ के अभाव में यद्यपि कोई काल निर्धारण करना सम्भव नहीं है, तथापि ये श्री उग्रादित्याचार्य के पूर्ववर्ती रहे होंगे और उनके द्वारा रचित ग्रंथ उनके समय में रहा होगा। मेघनाद ये भी उग्रादित्याचार्य द्वारा सन्दर्भित या उल्लिखित आचार्य हैं जिनके द्वारा शिशु वैद्यक जिसे बाल रोग चिकित्सा या कौमार मृत्य कहा जाता है विषय पर आधारित वैद्यक ग्रंथ की रचना किए जाने का उल्लेख है। यद्यपि इनके विषय में कोई साक्ष्य या ऐतिहासिक विवरण उपलब्ध नहीं है, अतः इनके विषय में कुछ कह पाना या इनके समय का निर्धारण करना सम्भव नहीं है, तथापि कल्याणकारक में इनका उल्लेख होने से ये श्री उग्रादित्याचार्य के पूर्ववर्ती रहे हैं-ऐसा मानना समीचीन होगा। डा. राजेन्द्र प्रकाश भटनागर के अनुसार ये दक्षिण की दिगम्वर परम्परा के आचार्य और वैद्यक शास्त्र के विद्वान थे। सिंहनाद जैन साहित्य के इतिहास में इनके विषय में कोई परिचयात्मक सामग्री अथवा ऐतिहासिक विवरण सुलभ नहीं होने से निश्चयात्मक रूप से इनके विषय में कुछ कहना सम्भव नहीं है। फिर भी इनके द्वारा आयुर्वेद के दो विषयों रसायन और बाजीकरण पर ग्रंथ लिखे जाने की आधिकारिक सूचना श्री उग्रादित्याचार्य ने अपने ग्रंथ 'कल्याणकारक' में दी है जो इस प्रकार है-“वृष्यं च दिव्यामृतमपि कथितं सिंहनादैर्मुनीन्द्रैः।" तदनुसार वृष्य अर्थात् बाजीकरण और दिव्यामृत अर्थात शरीर को जरा और व्याधि से मुक्त करने वाला रसायन तंत्र सम्बन्धी ग्रंथ का कथन सिंहनाद मुनीन्द्र द्वारा किया गया। श्री उग्रादित्याचार्य ने इनके लिए 'मुनीन्द्र' पद विशेषण रूप में लगाया है जिससे प्रतीत होता है कि ये दिगम्बर परम्परा के उच्च कोटि
SR No.538059
Book TitleAnekant 2006 Book 59 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2006
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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