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________________ 148 अनेकान्त 58/3-4 बाद जाति-व्यवस्था। विधवा विवाह, अन्तर्जातीय विवाह आदि को हमें सामाजिक परिप्रेक्ष्य में ही देखना चाहिए। यापनीय सम्प्रदाय व उनके शास्त्रों को लेकर भी विद्वानों में हमेशा मतभेद रहे हैं। यदि प्रेमी जी तथा पं. सुखलाल जी 'तत्त्वार्थसूत्र' को यापनीय ग्रन्थ मानते हैं, तथा अन्य दूसरे भी ऐसा मानते हैं, तो इसमें आगम विरुद्ध क्या दिखता है? मतभेद हो सकते हैं। डॉ. श्रेयांस जी लिखते हैं- 'यापनीय सम्प्रदाय द्वारा मान्य स्त्री-मुक्ति आदि सिद्धान्त तत्वार्थ सूत्र में देखने को नहीं मिलते अतः तत्वार्थ सूत्र यापनीय सम्प्रदाय का बिल्कुल भी नहीं माना जा सकता है। यह तर्क अधिक मजबूत नहीं हैं। यदि तत्वार्थ सूत्र में यह नहीं लिखा है कि स्त्री-मुक्ति सम्भव है, तो यह भी तो नहीं लिखा है कि स्त्री-मुक्ति सम्भव नहीं है। __ मेरा मानना है कि इस प्रकार के आलेखों के साथ आपका संपादकीय टिप्पण भी होना चाहिए। B/26, सूर्यनारायण सोसायटी विषत पैट्रोल पंप के सामने साबरमती, अहमदाबाद-380005
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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