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________________ अनेकान्त 58/3-4 133 कृति के समापन के आधार पर निर्माणकाल सन् 981 की मान्यता दृढ़ की गई है जबकि मूर्ति के निर्माण में दस वर्ष का समय लगा था। जस्टिस जी की उक्त खोज सटीक नहीं है, क्योंकि आचार्य नेमिचन्द्र ने स्वयं लिखा है कि उन्होंने चामुण्डराय के लिए इस गोम्मटसार ग्रन्थ की रचना की है, रूपक के रूप में प्रस्तुत किया है सिद्धंतुदयतडुग्गय णिम्मलवरणेमिचंदकरकलिया। गुणरयण भूषणं बुहिवेला भरइ भुवणयलं ।। 967 ।। गो.क. सिद्धान्तरुपी उदयाचल के तट पर उदित निर्मल नेमिचन्द्र की किरण से युक्त गुणरत्नभूषण अर्थात् चामुण्डराय रूपी समुद्र की यति रूपी वेला भुवनतल को पूरित करे। यहाँ गुणरत्न भूषणपद चामुण्डराय की उपाधि है। आचार्य नेमिचन्द्र ने गोम्सटसार के मंगलाचरण में गुणरमण भूषणुदय जीवसार परूवण वोच्छ” लिखकर प्रकारान्तर से चामुण्डराय का निर्देशन किया है। अन्य मंगल श्लोको में चामुण्डराय की उपाधियों का उल्लेख किया है।' गोम्मटसार द्वारा स्पष्ट है कि चामुण्डराय ने बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण कराया था।10 पण्डित श्री कैलाशचन्द्र शास्त्री ने तो स्पष्ट लिखा है कि नेमिचन्द्र और चामुण्डराय समकालीन थे। चामुण्डराय ने ही प्रतिमा का निर्माण कराया था। उनका तो यह भी कहना है कि चामुण्डराय का सम्बन्ध जैसा गोम्सटसार ग्रन्थ के साथ है, वैसा ही श्रवणबेलगोला की मूर्ति के साथ है।" हाँ यह अवश्य है कि आचार्य नेमिचन्द्र ने उस उत्तुंग मूर्ति का उल्लेख गोम्मट नाम से नहीं किया। वे अपने द्वारा रचित ग्रन्थ को ‘गोम्मटसंग्रहसूत्र' कहते हैं। चामुण्डराय को गोम्मट कहते हैं। चामुण्डराय के द्वारा निर्मित जिनालय को और उसमें स्थापित बिम्ब को गोम्मट शब्द से कहते हैं, किन्तु बाहुबली की मूर्ति को गोम्मट शब्द से नहीं कहते, उसे वह दक्षिण कुक्कुडजिन कहते हैं।12
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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