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________________ अनेकान्त 58/3-4 131 श्री चामुण्ड ने भक्तिपूर्वक दर्शन किये और अभिषेक कर अपने आपको धन्य किया। वहाँ से दक्षिण में पहुँचकर श्रवणबेल्गुल नगर में श्री गोम्मट स्वामी की प्रतिष्ठा की ओर 96 हजार दीनार को नव गोम्मट महोत्सव के निमित्त देकर गृहनगर की ओर प्रस्थान किया जैसा कि कहा भी है भास्वद्देशीगणाग्रेसरसुरुचिसिद्धान्तविन्नेमिचन्द्रश्रीपादाने सदा षण्णवतिदशशत द्रव्यभूग्रामवर्यान्। दत्वा श्री गोमटेशोत्सवनिमित्तार्चनविभवाय, श्रीचामुण्डराजो निजपुरमथुरां सजगाम क्षितीशः।। बाहु च. 61 अर्थात् श्री चामुण्ड ने श्री नेमिचन्द्र स्वामी के चरित्रों की साक्षी पूर्वक 96 हजार दीनार के गाँव श्रीगोम्मट स्वामी के उत्सव अभिषेक व पूजन आदि के निमित्त देकर अपनी नगरी मथुरा में गाजे-बाजे के साथ प्रवेश किया और अपने नरेश श्री राचमल्ल को वृतान्त सुनाया, जिसे सुनकर महाराजा राचमल्लदेव ने श्री नेमिचन्द्र स्वामी के चरणों में नतमस्तक पूर्वक डेढ़ लाख दीनारों के गॉव श्री गोम्मट स्वामी की प्रभावना के निमित्त प्रदान किए और श्री चामुण्ड को जिनमत की महिमा बढ़ाने के फलस्वरूप राय पदवी से विभूषित किया। इसलिए श्री चामुण्डराय नाम तभी से प्रसिद्ध है। इनका अपर नाम गोम्मट था और गोम्मटराय भी कहे जाते थे। श्री नेमिचन्द्राचार्य ने गोम्मटसार में इनके विजय की भावना की है। 1180 के शिलालेख से भी ज्ञात होता है कि चामुण्डराय का दूसरा नाम गोम्मट था। श्रावक शिरोमणि चामुण्डराय ने विन्ध्यगिरि पर श्री बाहुबली की प्रतिमा का निर्माण कराया था। इसका उल्लेख सिद्धान्तचक्रवर्ती श्री नेमिचन्द्राचार्य ने गोम्मटसार कर्मकाण्ड में किया है गोम्मटसंग्गहसुत्तं गोम्मटसिहरुवरि गोम्मट जिणो य। गोम्मटराय विणिम्मिय दक्खिणकुक्कुडजिणो जयदु ।। 968 ।।
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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