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________________ अनेकान्त 58/3-4 113 देखकर घड़ी भर तो दंग रह गया था। उसने भी इसकी कला और लोकोत्तर कारीगरी की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। भगवान् बाहुबली के आंगन के चारों तरफ एक अन्तर्गृह (परकोटा) है। इसमें किसी जमाने में (सन् 1817-18 में तो जरूर था) बड़ा अन्धकार था, दिन में भी मूर्तियां नहीं दिखती थीं। परन्तु धन्यवाद दीजिये समस्त भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी-मुंबई को और उसके सद्गत मैनेजर श्री बाबूलाल जी जैन (ये सज्जन टूंडला के पास सखावतपुर गांव के निवासी पद्मावतीपुरवाल जाति के थे) को जिन्होंने इनमें जालियाँ लगवा कर इन्हें प्रकाशित कर दिया। बामियों के पीछे जो पत्थर की दीवार लगा दी गई है वह भी उक्त कमेटी ने 4000 रु. खर्च करके बनवाई है। कर्नाटक सरकार ने भगवान् के मन्दिर को ही नहीं, सारे पर्वत को ही बिजली की रोशनी से जगमगा दिया है। ऊपर छत पर हासन निवासी सेठ एस. पुटसामैया श्रॉफ ने सर्चलाइट लगवा दी है। कर्नाटक माता महासती अत्तिमब्बे ___ भगवान् गोम्मटेश्वर की प्राण प्रतिष्ठा के समय विशाल मेला जो यहाँ लगा था उसमें देश देशान्तर के लोग आए थे उनमें एक थी कर्नाटक की देवी अत्तिमब्बे। वे तैलप सम्राट आहवमल्ल के प्रधान सेनापति सुभट मल्लप की पुत्री थीं। वे यौवनकाल मे ही विधवा हो गई थीं। एक वर्ष का बालक ही उनके जीवन का आधार था। अजितसेन महाराज के उपदेश से जैन धर्म के प्रचार प्रसार करने में उनकी रुचि हुई। वे अपने पति के द्वारा छोड़ी हुई सम्पत्ति का सदुपयोग करते हुए प्रत्येक विवाह के अवसर पर नवदम्पत्ति को शांतिनाथ का एक स्वर्णविग्रह और एक शास्त्र उपहार के रूप में देती थीं और साथ ही कम से कम पॉच शास्त्र लिखवाने की उन्हें प्रेरणा भी देती थीं। उनके कारण पन्द्रह सौ स्वर्ण पार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ घर-घर पहुंची और धवला, जय धवला की सौ-सौ प्रतियाँ जिनालयों में स्थापित हुई।
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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