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________________ अनेकन्न 58/3-4 पत्थर को वे तराश रहे हैं, उसमें से अन्त में जाकर ऐसी सर्वागसुन्दर मूर्ति निकल आयेगी। इस मूर्ति की ऊँचाई 57 फुट है। परन्तु पहले की सभी पुस्तकों में यह 70 फुट या 63 फुट की बताई है। कंधों की विशालता तो गज़ब की है, मानो बाहुबली भगवान के सारे शरीर का बल इन भुजाओं में ही इकट्ठा हो गया है। सर्वमान्य मान्यता यही है कि इस मूर्ति के कर्ता चामुण्डराय ही हैं। ये नरकेशरी गंगवंशीय राजा राचमल्ल (चतुथ) के प्रधान सेनापति तथा प्रधान मंत्री थे। राचमल्ल ने सन् 974 से 984 तक गंगवाड़ी में राज्य किया था। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि यह मूर्ति सन् 983 में निर्माण की गई होगी। इसके पास का प्रकोष्ट गंगराज ने सन् 1116 में बनवाया था। यह विशाल मूर्ति किस प्रकार यहाँ स्थापित हुई; इस सम्बंध में शंका की कोई गुंजाइश नहीं है। यह मूर्ति ग्रेनाइट की एक ही शिला काटकर बनाई गई है इसलिये प्रत्यक्ष रूप से ही यह नितान्त असंभव है कि यह कहीं दूसरी जगह बनाकर फिर बाद में विन्ध्यगिरि जैसे चिकने और ढलवाँ पहाड़ पर लाकर सीधी खड़ी कर दी गई हो। पहाड़ पर की शिलाओं का अभ्यास करने से यह बात निश्चित रूप से मालूम हो जाती है कि इसी पहाड़ के शिखर पर पहले एक बृहदाकार शिलाखंड था और उसी को काटकर यह मूर्ति बनाई गई है। अजंता, एलिफेंटा और कन्नरी आदि सभी मंदिर पहाड़ों की शिलाओं को कोर करके बनाये गये हैं। उनके मुकाबले में शिखर की शिला को काटकर मूर्ति निकालना तो अपेक्षाकृत आसान ही काम था। भगवान् बाहुबली की यह मूर्ति इतनी सुन्दर और सजीव है कि यदि इसे जैन-मूर्तिकला का प्रतीक कहा जाए तो कोई अत्युक्ति नहीं। जैन-मूर्तिकला और उसका मूर्ति शिल्प कला-वैभव इतना महान और
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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