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________________ अनेकान्त 58/3-4 वास्तव में कविराज वोप्पण के मुख में प्राकृतिक रूप से स्थित बत्तीस दांतों की सम्मिलित पूजा है। भगवान् गोम्मटेश की कलात्मक प्रतिमा की प्रशंसा में कवि का कला प्रेमी मन इस प्रकार से अभिव्यक्त हुआ है अतितुंगाकृतिया दोडागददरोल्सौन्दर्य्यमौन्नत्यमु नुतसौन्दर्यमुमागे मत्ततिशयंतानागदौन्नत्यमुं। नुतसौन्दर्य्यमुमूजितातिशयमुं तन्नल्लि निन्दिईवें क्षितिसम्पूज्यमो गोम्मटेश्वर जिनश्रीरूपमात्मोपमं । xxx xxx मरेदुं पारदु मेले पक्षिनिवहं कक्षद्वयोद्देशदोल् मिरुगुत्तुं पोरपोण्मुगुं सुरभिकाश्मीरारुणच्छायमीतेरदाश्चर्य्यमनी त्रिलोकद जनं तानेय्दे कण्डिहुंदान्नेरेवन्र्नेट्टने गोम्मटेश्वरजिनश्री मूर्तियं कीर्तिसत् ।। अर्थात् 'जव मूर्ति बहुत बड़ी होती है तब उसमें सौन्दर्य प्रायः नहीं आता। यदि बड़ी भी हुई और सौन्दर्य भी हुआ तो उसमें दैवी प्रभाव का अभाव हो सकता है। पर यहाँ इन तीनों के मिश्रण से गोम्मटेश्वर की छटा अपूर्व हो गर्व है। कवि ने एक दैवी घटना का उल्लेख किया है कि एक समय सारे दिन भगवान् की मूर्ति पर आकाश से 'नमेरु' पुष्पों की वर्षा हुई जिसे सभी ने देखा। कभी कोई पक्षी मूर्ति के ऊपर होकर नहीं उड़ता। भगवान् की भुजाओं के अधोभाग से नित्य सुगन्ध और केशर के समान रक्त ज्योति की आभा निकलती रहती है। सहस्राधिक वर्ष से भगवान् वाहुबली की अनुपम प्रतिमा जन-जन के लिए वन्दनीय रही है। दिग्विजयी सम्राटों, कुशल मन्त्रियों, शूरवीर सेनापतियो, मुसलमान राजाओं, अंग्रेज गवर्नर जनरल, देश-विदेश के कलाविदो एवं जनसाधारण ने इस मूर्ति में निहित सौन्दर्य की मुक्त कंठ से सराहना की है। कायोत्सर्ग मुद्रा में यह महान् मूर्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का सन्देश दे रही है। सुप्रसिद्ध कला-प्रेमी एवं चिन्तक श्री
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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