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अनेकान्त 58/3-4
मिलता है। इस सम्प्रदाय में अनेक प्रतिभाशाली आचार्य एवं कवि हुए हैं, जिन्होंने संस्कृत, प्राकृत, कन्नड आदि भाषा में शताधिक प्रतिष्ठित ग्रन्थों की रचना की है।
भगवान् गोम्मटेश्वर के विग्रह के यशस्वी निर्माता राजा चामुण्डराय अनेक युद्धो के विजेता थे। उन्होंने अपने स्वामी राजा मारसिंह एवं राजा गचमल्ल (चतुर्थ) के लिए अनेक युद्ध किए थे। उनके पराक्रम से शत्रु भयभीत हो जाते थे। त्यागब्रह्मदेव स्तम्भ पर उत्कीर्ण एक पाषाण लेख (106/281) में उनके कुल एवं विजय अभियानों का ऐतिहासिक विवरण इस प्रकार मिलता हैब्रह्म-क्षत्र-कुलोदयाचल-शिरोभूषामणिर्मानुमान् ब्रह्म-क्षत्रकुलाब्धि-वर्द्धन-यशो-रोचिस्सुधा-दीधितिः। ब्रह्म-क्षत्र-कुलाकराचल-भव-श्री-हार वल्लीमणिः ब्रह्म-क्षत्र-कुलाग्निचण्डपवनश्चावुण्डराजोऽजनि। कल्पान्त-क्षुभिताब्धि-भीषण-बलं पातालमल्लानुजम् जेतुं वज्विलदेवमुद्यतमुजस्येन्द्र-क्षितीन्द्राज्ञया। पत्युश्श्री जगदेकवीर नृपतेर्जेत्र-द्विपस्याग्रतो धावद्दन्तिनि यत्र भग्नमहितानीकं मृगानीकवत् । अस्मिन् दन्तिनि दन्त-वज्र-दलित-द्विट्-कुम्भि-कुम्भोपले वीरोत्तंस-पुरोनिषादिनि रिपु-व्यालांकुशे च त्वयि। स्यात्कोनाम न गोचरप्रतिनृपो मद्बाण-कृष्णोरगग्रासस्येति नोलम्बराजसमरे यः श्लाघितः स्वामिता। खातः क्षार-पयोधिरस्तु परिधिश्चास्तु त्रिकूटपुरी लंकास्तु प्रतिनायकोऽस्तु च सुरारातिस्तथापि क्षमे। तं जेतुं जगदेकवीर-नृपते त्वत्तेजसेतिक्षणान्नियूँटं रणसिंग-पार्थिव-रणे येनोजितं गजितम् ।