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अनेकान्त 58/3-4
मोक्ष प्राप्त किया था। इसी कारण उन्हें सर्वप्रथम मोक्षगामी भी कहा जाता
है।
चक्रवर्ती सम्राट् भरत द्वारा पोदनपुर स्थित भगवान् बाहुबली की 525 धनुष ऊंची स्वर्ण निर्मित प्रतिमा का आख्यान श्रवणबेलगोल स्थित भगवान गोम्मटेश की ऐतिहासिक मूर्ति के निर्माण का मुख्याधार है। इस लुप्तप्राय तीर्थ का गोम्मटदेव से विशेष सम्बन्ध रहा है। अजेय सेनापति चामुण्डराय द्वारा श्रवणबेलगोल में भगवान् बाहुबली की प्रतिमा के निर्माण से पूर्व के जैन साहित्य में पोदनपुर की सुख-समृद्धि का उल्लेख बहुलता से मिलता है। इस महान् तीर्थ के माहात्म्य को देखते हुए पूज्यपाद देवनन्दि (लगभग 500 ई.) ने निर्वाणभक्ति (तीर्थवन्दना संग्रह, पद्य 26) में इस तीर्थ की गणना सिद्ध क्षेत्र में की है। यदि निर्वाण भक्ति का यह अंश प्रक्षिप्त नहीं है तो पोदनपुर की गणना निश्चय ही प्राचीन तीर्थक्षेत्रों में की जा सकती है। ___ एक जनश्रुति के अनुसार चक्रवर्ती सम्राट भरत ने अपने अनुज बाहुबली की तपश्चर्या एवं मोक्षसाधना के उपलक्ष्य में भगवान् गोम्मटेश की राजधानी पोदनपुर में बाहुबली के आकार की 525 धनुष ऊंची स्वर्ण प्रतिमा बनवाई थी। कालान्तर में प्रतिमा के निकटवर्ती क्षेत्र में कुक्कुट सर्पो का वास हो गया और मूर्ति का नाम कुक्कुटेश्वर पड़ गया। कालान्तर में मूर्ति लुप्त हो गई और उसके दर्शन केवल दीक्षित व्यक्तियों के लिए मन्त्र शक्ति से प्राप्त रह गये। जैनाचार्य जिनसेन (आदिपुराण के रचयिता से भिन्न लोककथाओं में उल्लिखित अन्य) के मुखारविन्द से भगवान् बाहुबली की मूर्ति का वर्णन सुनकर सेनापति चामुण्डराय की माता कालिकादेवी ने मूर्ति के दर्शन की प्रतिज्ञा की। अपनी धर्मपरायण पत्नी अजितादेवी से माता की प्रतिज्ञा के समाचार को जानकर चामुण्डराय परिवार जनों के साथ भगवान् गोम्मटेश की मूर्ति के दर्शनार्थ चल दिए। मार्ग में उन्होंने श्रवणबेलगोल के दर्शन किए। रात्रि के समय उन्हें देवी ने स्वप्न में कहा कि कुक्कुट सॉं के कारण पोदनपुर के भगवान् गोम्मटेश