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अनेकान्त 58/3-4
अपने गुरु के स्मारक स्वरूप अनेक शासन रचे तथा तालाब आदि का निर्माण करवाया। बल्लण के संन्यास विधि से शरीर त्याग करने पर उसकी माता व बहन ने उसकी स्मृति में एक पट्टशाला (वाचनालय) स्थापित करवाई। इनके अतिरिक्त चैत्यालय निर्माण और स्तम्भ प्रतिष्ठापना के वर्णन भी श्रवणबेल्गोला के अभिलेखों में मिलते हैं।
इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आलोच्यकाल में दान परम्परा का अत्यन्त महत्त्व था। दान प्रायः अपने पूर्वजों की स्मृति में तथा जन-साधारण के उपकार के लिए दिया जाता था। उस समय वसदि निर्माण, मन्दिर निर्माण तथा जीर्णोद्धार, धन दान, मूर्ति दान, निषद्या निर्माण, तालाब, पट्टशाला, चैत्यालय, परकोटा निर्माण आदि के अतिरिक्त निर्माण व जीर्णोद्धार सम्बन्धी कार्यो के लिए ग्राम व भूमि का दान दिया जाता था। ग्राम व भूमि से प्राप्त होने वाली आय से आहार आदि की व्यवस्था भी की जाती थी।
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प्रगति भवन, प्रगति मैदान, नई दिल्ली-110001 संदर्भ : 1. परानुग्रहबुद्ध्या स्वस्यातिसर्जन दानम्। (राजवार्त्तिक 6/12/4/522) 2 धवला 13/5, 5-137/389/121 3 सवार्थसिद्धि 6/12/388/11। 4. सागारधर्मामृत 5/471 5. जैन शिलालेख सग्रह, भाग एक, लेख सख्या 99-101, 4971 6 पंचविंशतिका 7/13। 7. जै. शि ले. सं भाग एक, ले. स. 991 8. जै. शि स. भाग एक, ले. सं. 1001 9. वही ले स 101 । 10. वही ले. सं. 561 11. वही ले. स. 831 12. वही ले. स. 901 13. वही ले. सं. 124 ।