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अनेकान्त 58/3-4
को भी जीत लिया और अनन्तदर्शन, ज्ञान, सुख और वीर्य के धनी हो गए।"
स्वर्ग के देवता और मर्त्यलोक के मनुष्य स्तुति कर रहे हैं
" आपने जैसा ध्यान किया वैसा ध्यान भला कौन कर सकता, ध्यान-चक्रवर्ती योगीश्वर बाहुबली तृतीय काल में जन्मे, जीवन जिया, जीवन्मुक्त हुये और मुक्ति श्री का वरण भी किया ।" यद्यपि भगवान् बाहुबली तीर्थकर नहीं थे तथापि उनकी प्रतिमाएँ, कारकल, मूढ़बिद्री, वादामि पर्वत संग्रहालय बंबई, जूनागढ़ खजुराहो, लखनऊ, देवगढ़, तिलहरी, फिरोजाबाद, हस्तिनापुर, एलोरा आदि में हैं। यह उनके अप्रतिम त्याग और अद्भुत तपश्चरण का ही प्रभाव है जो आज भी उनकी मूर्ति की स्थापना से दिगम्बरत्व गौरवान्वित हो रहा है ।
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महाश्रमण गोम्मटेश्वर बाहुबली की दिगम्बर मूर्ति युग-युग तक असंख्य प्राणियों को सुख और शान्ति, सन्तोष और समृद्धि बन्धन और मुक्ति, भोग और योग, स्वतन्त्रता और स्वामिभान का सन्देश देती रहेगी और सृष्टि को शिव का मार्ग प्रदर्शित करती रहेगी तथा अतीत की भाँति आज भी अपने चरित्र और चारित्र को पुनरावलोकन करने हेतु प्रेरणा देती है
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जब तक सूर्य और चन्द्र प्रकाश देते हैं, सरितायें बहती हैं, सरोवर लहराते हैं, समुद्र उद्वेलित होते हैं तब तक भारतीय संस्कृति की ज्वलन्त उदाहरण जैसी गोम्मटेश्वर बाहुबली की प्रतिमा का पूजन-अर्चना करते हुये भक्तजुन त्रैविद्यदेव नेमीचन्द्र 'सिद्धान्त चक्रवर्ती' के स्वर में मिला कर कहते रहेंगे
परम दिगम्बर इतिभीति से रहित विशुद्धि बिहारी । नाग समूहों से आवृत फिर भी स्थिर मुद्रा धारी ।। निर्भय निर्विकल्प प्रतिमायोगी की छवि मन लाऊँ । गोमटेश के श्रीचरणों में बारम्बार झुक जाऊँ ।।
-22, बजाजखाना, जाबरा (म. प्र. )