SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 128 अनेकान्त-58/1-2 की है उससे साहित्य वर्ग एवं समाज वर्ग कभी उऋण नहीं हो सकता । समाज पत्रिकाओं में उनके स्वर्गवास पर खेद प्रकट करने तक अपनी श्रद्धांजलि सीमित न रखे वरन उनके द्वारा साहित्य के क्षेत्र में दिए गए योगदान को प्रकाशित करवाकर ही इतने बड़े व्यक्तित्व को एक छोटी सी श्रद्धांजलि दे सकता है। समाज की ओर से यही एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी जिससे आने वाली पीढ़ी उनके व्यक्तित्व एवं वृहद् कृतित्व से प्रेरणा ले सकेगी । वीर सेवा मंदिर से प्रकाशित 'अनेकान्त' पत्रिका में भी आपके तथ्यपरक आगम सम्मत दार्शनिक एंव पुरातात्त्विक लेख छपते रहे हैं। आपके कठिन परिश्रम एवं निर्भीकता से लिखे गए यह लेख शोध विद्यार्थियों एवं दर्शन, पुरातत्त्व के जिज्ञासुओं को दिशाबोध प्रदान करने वाले हैं। वीर सेवा मंदिर परिवार इस महान् व्यक्तित्व के दिवंगत होने पर स्तब्ध है । श्री अजित प्रसाद जी द्वारा जैन धर्म, जैन समाज को दिए गए योगदान को नमन करता है । आशा है कि श्री रमाकान्त जी, श्री शशिकान्त जी आपके द्वारा किए गए कार्यों को गति प्रदान करेंगे। | 1 सहायक विद्वान वीर सेवा मंदिर 4674/ 21 दरियागंज, नई दिल्ली-110002 विद्वान् की आवश्यकता वीर सेवा मंदिर (जैन दर्शन शोध संस्थान), 21, दरियागंज, नई दिल्ली-2 को एक विद्वान् की आवश्यक्ता है जिन्हें संस्कृत व । प्राकृत भाषा का ज्ञान हो और जैन दर्शन के शोध में रुचि हो । आवास, बिजली, पानी की सुविधा और सम्मानजनक मानदेय सम्पर्क करें - दूरभाष - 011-23250522 - सुभाष जैन, महासचिव फोन : 23271818
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy