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________________ अनेकान्त-58/1-2 117 संबंध है प्रायः नगण्य ही थी। गौतमबद्ध का स्वयं तत्कालीन राज्य-वंशो पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, उनके जीवनकाल में ही उनके पिता का राज्य, राजधानी तथा शाक्यवंश प्रायः नष्ट हो गया था। सिकन्दर और मेगस्थनीज के समय बौद्ध सम्प्रदाय कुछ एक “झगड़ालु व्यक्तियों" का सामान्य सा सम्प्रदाय मात्र था। अशोक के समय तक बौद्ध तीर्थो पर राज्य की ओर से यात्री कर लगा हुआ था। इस सम्प्रदाय के प्रति शासन की कठोरता और उपेक्षा के कारण उस समय के बौद्धधर्माध्यक्ष तिस्मने बौद्धभिक्षुओं को देशान्तर में सो भी उज्जडु, असभ्य सुदूर प्रदेशों में जाकर निवास करने और धर्म प्रचार करने की आज्ञा दी। इस देश में तो मात्र कुछ कट्टर बौद्धभिक्षुओं ने जैसे तैसे अपना अस्तित्व बनाये रखा और जब जब राज्यक्रान्तियों अथवा सामाजिक उथल-पुथल के कारण उन्हें सुयोग मिला, उन्होंने अपना धार्मिक स्वार्थसाधन किया, किन्तु विशेष सफल फिर भी न हो सके और इसी युग में सन् ई. 7वीं 8वीं शताब्दी तक इस देश से उनका नाम शेष हो गया। सीमान्त प्रदेशों में तथा बाह्यदेशों मे अवश्य ही वह शक, हूण, मङ्गाल आदि विदेशी आक्रान्ताओं को प्रभावित कर अपनी शक्ति बढ़ाने के प्रयत्न में लगे रहे। सिंहल, पूर्वाभिद्वीपसमूह, स्वर्ण-द्वीप (मलाया), ब्रह्मा, चीन, जापान, तिब्बत मङ्गोलिया आदि में अवश्य ही अत्याधिक सफल हुए, ठीक उसी तरह जैसे 15वीं 16वीं शताब्दि में इंग्लैण्ड से बहिष्कृत, राज्य और प्रजा दोनों द्वारा पीड़ित थोड़े से धर्मयात्री (Pilgrim Enthers) आज अमरीका जैसा महाशक्तिशाली राष्ट्र निर्माण करने में सफल हो गये। जैनों की आज की राजनैतिक, सामाजिक स्थिति, अल्प संख्या, अपने महत्व को स्वयं न समझने तथा अपने प्राचीन साहित्य के अमूल्य रत्नों को प्रकाशित न कर ताले में बन्द भंडारों में कीड़ों का ग्रास बनाने, पुरातत्वसंबंधी अमूल्य निधि को न पहचानने और जानने का यत्न न करने आदि से उनके इस युग में प्राप्त महत्व तथा प्रधानता का अनुमान करना तनिक कठिन है। किन्तु निष्पक्ष इतिहास प्रेमी को अब भी इस लेख में विवेचित तथ्यों की साक्षी में पर्याप्त प्रबल प्रमाण मिल सकते हैं और मिलते हैं। किसी जाति की वर्तमान हीन अवस्था से यह निष्कर्ष निकालना कि यह
SR No.538058
Book TitleAnekant 2005 Book 58 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2005
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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