SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त-57/1-2 87 जाता है। गौरव का अर्थ यहाँ अभिमान है। आत्मा का स्वभाव :- मार्दव-धर्म आत्मा का स्वभाव है और उसका विरोधी भाव मान उसका विभाव है। मान-सम्मान की आकांक्षा के पीछे अहवार का भाव रहता है। वह न मिलने पर अहङ्कारी दुःख और अपमान का अनुभव करता है और दूसरे का अपमान कर उसका बदला लेता है। उसके अहङ्कार की तृप्ति । समाज में पहुंचकर होती है। वह समाज नैतिक होगा या धार्मिक होगा; पर उसकी नैतिकता और धार्मिकता के पीछे अहङ्कारी का अहङ्कार तृप्त हुए बिना नहीं रहेगा। ___समाज धार्मिक कम होता है, नैतिक अधिक होता है। नीति का लबादा ओढ़े वह कर्तव्य की बात करता है। व्यक्ति माता-पिता की सेवा तो नहीं करना चाहता पर समाज अंगुलि न उठाये इसलिए कर्तव्य मानकर वह सेवा करता है। ऐसी सेवावृत्ति में उसे आनन्द नहीं आता; क्योंकि वह सेवा भीतर से नहीं होती, उसे वह धर्म नहीं मानता। अतः धर्म और नीति दोनों अलग-अलग तत्त्व हैं। विवेक इन सभी के ऊपर है। सारी बीमारियां और बुराइयां विवेकहीनता में होती हैं। विवेक उस बेहोशी को और अहङ्कार को दूर कर देता है। यही विवेक सम्यग्ज्ञान कहलाता है। सम्यग्ज्ञान में शुष्क बुद्धि काम नहीं करती, जागरण काम करता है जिसे आत्मा का स्वभाव कहा जा सकता है। अहङ्कार : प्रकृति और परिणाम :- अहङ्कार शक्ति की खोज में रहता है, धर्म की खोज में नहीं। शक्ति की खोज में सतत् घूमने वाले नेपोलियन, हिटलर जैसे लोग भी अन्त में हाथ खोलकर चल बसे। उनकी यात्रा शक्ति की यात्रा थी, पर धर्म की यात्रा अन्तर की यात्रा है। शक्ति की यात्रा में अहङ्कार फलता-फूलता रहता है, वहाँ न सत्य की खोज हो पाती है और न तपस्या ही पूरी हो पाती है। वह तो दूसरे में दोष देखता है और स्वयं को निर्दोष सिद्ध करने का प्रयत्न करता है, निन्दा में रस लेता है और प्रशंसा में पीड़ा का अनुभव करता है। पर्वत पर खड़े व्यक्ति को नीचे खड़ा व्यक्ति छोटा ही दिखता है।
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy