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________________ अनेकान्त-57/1-2 मिलता है और किसी का इस जन्म में मिलता नहीं। इसका क्या कारण है? कर्मफल के भोग में यह समय की विषमता क्यों देखी जाती है। ईश्वरेच्छा के सिवाय इसका कोई संतोषजनक समाधान ईश्वरवादियों की ओर से नहीं मिलता। किंतु कर्म में ही फलदान की शक्ति मानने वाला जैन कर्म-सिद्धान्त उक्त प्रश्नों का बुद्धिगम्य समाधान करता है। 19 संदर्भ 1 एक द्रव्यगुणं संयोग विभागेष्वनपेक्षकारणमिति कर्मलक्षणम्-1.7 सभाष्य वैशेषिक दर्शन-4.35 2 उत्क्षेपणं ततोऽवक्षेपणमाकुंचनं तथा। प्रसारणं च गमन कर्माण्येतानि पंच च।।-सि मुक्तावली। 3. सम्यक्ज्ञानाधिगमाद् धर्मादीनामकारणप्राप्तौ। तिष्ठति संस्कारवशाचक्रभ्रमिवद् धृत शरीरः।सांख्यतत्त्व कौमुदी 67 4 योगः कर्मसु कौशलम्, 5 कर्मज्यायो ह्यकर्मणः ।। गीता 3,8 6 क्लेशमूल कर्माशय. दृष्टादृष्टजन्यवेदनीय सति मूले तद्वियाको जात्यायुभॊगा । ते ह्लाद परितायफला पुण्यापुण्यहेतुत्वात् ।। योगसूत्र 2.12, 14 'कर्माशुक्लकृष्ण योगिनस्त्रिविधमितरेषाम् योगदर्शन-कैवल्यपाद 7 7 यो ह्यम देव-मनुष्य-तिर्यग्भूमिषु शरीरसर्गः, यश्च प्रतिविषय बुद्धिसगे., यश्चात्मना सह मनसा संसर्गः स सर्वः प्रवृत्तेरेव परिणामविभवः। प्रवृत्तेश्च सर्वस्याः क्रियात्वात् क्षणिकत्वेऽपि तदुपहितो धर्माधर्मशब्दवाच्य आत्मसंस्कार कर्मफलोपभोग्गपर्यन्त स्थितिरस्त्येव ।। न्यायमंजरी, पृ 70 8. अंगुत्तरनिकाय, मिलिन्दप्रशन 81, 9. डॉ. राधाकृष्णन् : भारतीय दर्शन, 2/142, 10. वही, 1/128, 11. वही, 1/129, 12 डॉ. श्री नारायण मिश्र . भारतीय दर्शन, 13. न्यायसूत्र, 4/45, 47, 14. आचार्य विद्यानन्दि : अष्टसहस्त्री, पृ. 268-273 15 ससारोऽयं नैकस्वभावेश्वरकृतः, तत्कार्यसुख-दुःखादि वैचित्र्यात्। न हि कारणस्यैकरूपत्वके कार्यनानात्वं युक्तं शालिबीजवत्।। अष्टशती, 16. अष्टशती कारिका, 99, 17. डॉ भागचन्द भास्कर का 'दर्शन भारती' पत्रिका में प्रकाशित बौद्ध दर्शन में ईश्वर मीमांसा लेख, पृ. 57 । 18. डॉ. श्रीयासंकुमार सिंघई का 'दर्शन भारती' पत्रिका में प्रकाशित ईश्वरवाद और जैनकर्म सिद्धान्त, लेख पृ. 113, 19. पं. कैलाशचन्द शास्त्री द्वारा लिखित गोम्मटसार कर्मकाण्ड की प्रस्तावना, पृ. 16-18 __-डॉ. अशोक कुमार जैन जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं, राजस्थान
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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