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________________ अनेकान्त-57/1-2 A7 दूसरे की आवश्यकता है? दूध में बलदायक शक्ति है अतः उसको पीने वाला स्वयं बलशाली होता है और शराब में मादक शक्ति है अतः उसे पीने वाला स्वयं मतवाला होता है। इसी प्रकार जो अच्छे कार्यों के द्वारा शुभ कर्म का बंध करता है उसकी परिणति स्वयं अच्छी होती है और जो बुरे कार्यो के द्वारा अशुभ कर्म का बंध करता है उसकी परिणति स्वयं बुरी होती है। पूर्वजन्म के अच्छे-बुरे संस्कारवश ही ऐसा होता है। __ आशय यह है कि जीव की प्रत्येक कायिक, वाचिक और मानसिक क्रिया को निमित्त करके जो पुद्गल कर्म परमाणु जीव की ओर आकृष्ट होते हैं और राग-द्वेष का निमित्त पाकर उससे बंध जाते हैं। उन कर्म परमाणुओं में भी शराब और दूध की तरह अच्छा या बुरा करने की शक्ति होती है जो चैतन्य के संबंध से व्यक्त होकर उस पर अपना प्रभाव डालती है तथा उससे प्रभावित हुआ जीव ऐसे कार्य करता है जो उसे सुखदायक या दुःखदायक होते हैं। यदि कर्म करते समय जीव के भाव अच्छे होते हैं तो बंधने वाले कर्म परमाणुओं पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है और कालांतर में अच्छा फल मिलने में निमित्त होते हैं। यदि भाव बुरे होते हैं तो उसका प्रभाव भी बुरा पड़ता है और कालांतर में फल भी बुरा मिलता है। अतः जीव को फल भोगने में परतंत्र मानने की आवश्यकता नहीं है। यदि ईश्वर को फलदाता माना जाता है तो जब एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का घात करता है तब घातक को दोषभागी नहीं होना चाहिए, क्योंकि उस मनुष्य के द्वारा ईश्वर ने मरने वाले को मृत्यु का दण्ड दिया है। जैसे- राजा जिन व्यक्तियों के द्वारा अपराधियों को दण्ड देता है वे व्यक्ति अपराधी नहीं माने जाते, क्योंकि वे राजा की आज्ञा का पालन करते हैं। इसी तरह किसी का घात करने वाला भी जिसका घात करता है उसके पूर्वकृत कर्मो का फल भोगता है क्योंकि ईश्वर ने उसके पूर्वकृत कर्मो की यही सजा नियत की, तभी तो उसका वध हुआ। यदि कहा जाय कि मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है अतः घातक का कार्य ईश्वर प्रेरित नहीं है किंतु उसकी स्वतंत्र इच्छा का परिणाम है, तो कहना होगा कि संसार दशा में कोई भी प्राणी वास्तव में स्वतंत्र नहीं हैं, सभी अपने-अपने कर्मों से बंधे हैं। महाभारत में भी लिखा है-कर्मणा बध्यते जन्तुः। प्राणी कर्म से बंधता है और कर्म की परम्परा अनादि है। ऐसी
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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