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जनरल : 69
'लघुतत्त्वस्फोट' के परिप्रेक्ष्य में “आचार्य अमृतचन्द्र सूरि के कृतित्व का वैशिष्ट्य
- डॉ. श्रेयांस कुमार जैन अध्यात्मविद्या पारङ्गत आचार्यप्रवर श्री अमृतचन्द्र सूरि दिगम्बर परम्परा के उद्भट मनीषी थे। इन्होंने आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार, प्रवचनसार और पञ्चास्तिकाय की टीकायें लिखकर उनकी आध्यात्मिक और दार्शनिक दृष्टियों का पल्लवन तथा सम्यक व्याख्यान कर महती कीर्ति अर्जित की। साथ ही पुरुषार्थ-सिद्ध्युपाय नामक श्रावकाचार विषयक ग्रन्थ, आचार्य उमास्वामी कृत तत्वार्थसूत्र के आधार पर तत्त्वार्थसार और जिनस्तवन के रूप में लघुतत्त्वस्फोट लिखकर जैन वाङ्मय की समृद्धि में महान् योगदान दिया।
लघुतत्त्वस्फोट की प्राप्ति भगवान् महावीर के पच्चीससौवे निर्माण महोत्सव काल में हुई अतः इससे पूर्व अमृतचन्द्र सूरि के कृतित्व में इसका उल्लेख भी नहीं मिलता है। इसकी पाण्डुलिपि पण्डित श्री पन्नालाल साहित्याचार्य प्रभृति विद्वानों को उपलब्ध करायी गई उन्होंने संशोधन और अनुवाद करके महनीय कार्य किया। इसके अनन्तर पं. श्री ज्ञानचन्द विल्टीवाला जयपुर द्वारा भी विशेषार्थ सहित व्याख्या लिखी गई। इन मनीषियों ने यह अद्भुत कृति स्वाध्यायियों के स्वाध्याय का विषय बनायी यह इनकी महती कृपा है और जिनागम के प्रति विशेष भक्ति का निदर्शन है।
"लघुतत्त्वस्फोट' आचार्य अमृतचन्द्र सूरि की रचना है क्योंकि उन्होंने इसकी अन्तिम सन्धि में अमृतचन्द्र सूरि का उल्लेख किया है।' ग्रन्थ समाप्ति के अनन्तर श्लोक में “अमृतचन्द्र कवीन्द्र" पद का प्रयोग है।' आचार्य। आध्यात्मिक और दार्शनिक शैली में समयसार न) कलश और लघुतत्त्वस्फोट बेजोड़ काव्य कृतियों का सृजन किया है। इनमें इनका कवीन्द्रत्व स्पष्ट दिखता