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अनेकान्त-57/1-2
समर्पण के अभाव में अनुरागहीन सेना से क्षुब्ध होकर ही महासेन प्रद्योत द्वारा उदयन को पकड़ने के लिए कपट का आश्रय लेना पड़ा था । कभी-कभी अपने पदाधिकारियों अथवा निकट सम्बन्धियों द्वारा राजा के प्रति निष्ठा के अभाव एवं उनके विरोधी व्यवहार के फलस्वरूप राजा को बड़ी कठिनाइयों का सामना करते हुए भयंकर दुविधा अनुभव करनी पड़ती थी । शासन का समस्त भार इन्हीं पदाधिकारियों के कंधों पर होता था परन्तु अधिकारियों अथवा राजपरिवार के सदस्यों का आपसी गतिरोध राजा के लिए चिन्ता का विषय बन जाता था । अभिषेक नाटक में उल्लेख आया है कि अहंकारी राजा रावण के लिए उसका भाई विभीषण बड़ी चिन्ता का विषय बन गया था क्योंकि वह शत्रु पक्ष अर्थात् राम की शरण में पहुँच गया था । '
शत्रु राजा की कुपित दृष्टि एवं उनके द्वारा विरोधी राज्य पर आधिपत्य करने की महत्त्वाकांक्षाओं के अधीन राज्य पर होनेवाले अप्रत्याशित आक्रमणों से राजा सदैव आशंकित रहते थे। दूसरी ओर प्रत्येक राजा अपने दायित्व एवं क्षात्र धर्म पालन के कारण अपनी पूर्ण सामर्थ्य के साथ इस प्रकार के आक्रमणों का प्रत्युत्तर देने की चिन्ता में व्यग्र रहते थे, जिस कारण राजा को सदैव अपनी सेना को युद्ध के लिए तैयार रखना पड़ता था । अग्निमित्र की सेनाओं द्वारा यज्ञसेन को परास्त कर उसका मुँहतोड़ जवाब देना स्वयं यज्ञसेन के लिए एक समस्या बन गयी थी । '
पारिवारिक एवम् आन्तरिक समस्याएँ :- सभी ओर से ऐश्वर्य, सुख-सुविधाएँ एवं धन-धान्य से सम्पन्न राजाओं के सामने अपने स्वयं के जीवन में ऐसी विकट समस्याएँ उत्पन्न हो जाती थीं, जिनका कोई भी निराकरण सम्भव नहीं था, फलतः ऊपर से सुखी दिखाई देनेवाला राजा अपने हृदय से बड़ा व्याकुल और चिन्ताग्रस्त रहता था । अनेक राजाओं के लिए उनका निःसंतान होना चिन्ता का प्रमुख विषय था । वैदिक धर्म के अनुसार पुरुषार्थ की प्राप्ति तथा पितृ ऋण से उऋण होना पुत्र प्राप्ति के बिना सम्भव नहीं था । रघुवंश में उल्लेख मिलता है कि सन्तान के बिना राजा दिलीप असहाय थे | 10 राजा दशरथ का प्रारम्भिक दस वर्षो तक निःसंतान होने के कारण शोकग्रस्त रहना