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________________ प्राचीन संस्कृत साहित्य में राजा की समस्याएँ - डॉ. मुकेश बंसल प्राचीन संस्कृत साहित्य में राजाओं के व्यक्तिगत जीवन एवं शासन-कार्य में आनेवाली समस्याओं की विशद जानकारी प्राप्त होती है। राजा के पास यद्यपि ऐश्वर्य और सुख के समस्त साधन उपलब्ध रहते थे किन्तु अनेक अवसरों पर निजी जीवन की समस्याओं एवं दुःखों से राजा भी अछूता नहीं रहता था। राजा पर समस्याओं की दोहरी मार पड़ती थी, एक स्वयं के जीवन की और दूसरी शासन प्रशासन की। कालिदास का मानना है कि राजा के लिए राजपद का निर्वाह करना एक अत्यन्त दुष्कर कार्य था। क अभिज्ञानशाकुन्तल में उदाहरण आया है कि राजपद हाथ में छाता धारण करनेवाले व्यक्ति के समान है, जिसे आराम के साथ थकान का अनुभव भी होता रहता है। राज्य संभालनेवाले व्यक्ति को अनेक विषम परिस्थितियों से गुजारने के बाद राजपद उसकी समस्त उत्सुकताओं को समाप्त कर देता है।ख राजा को शासन-व्यवस्था सुचारू रूप से चलाने एवं राज्य में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के निमित्त अनेक समस्याओं से जूझना पड़ता था। उसके समक्ष आन्तरिक एवं बाह्य समस्याएँ किसी न किसी रूप में उपस्थिति होती रहती थीं। उसे सामान्य व्यक्ति की भाँति कभी निश्चित होकर बैठने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता था। उसके समक्ष कभी राज्य की सुरक्षा का भय तो कभी बाह्य आक्रमण का भय अथवा आन्तरिक शान्ति और व्यवस्था बनाये रखने की अनेक चिन्ताएँ सताये रहती थीं। सुरक्षा संबंधी समस्याएँ :- प्राचीन भारत में शासकों को शासन-संचालन के अतिरिक्त अपने लिए बाह्य शत्रुओं द्वारा गुप्तरूप से शारीरिक आघात पहुँचाने, विष का प्रयोग करके जान से मारने, राज्य में आन्तरिक अव्यवस्था फैलाने, सैनिकों में फूट डालने आदि का निरन्तर खतरा बना रहता था। वत्सराज
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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