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अनेकान्त-57/3-4
सम्बन्धी विविध अनुभूतियों और धारणाओं के साथ साथ जीवन के आदर्श
और लक्ष्य भी विविध निर्धारित हुए हैं। वह लक्ष्य तात्कालिक इन्द्रिय सुख से लेकर दुष्प्राप्य आध्यात्मिक सुख तक अनेक भेदवाला प्रतीत होता है। ___ लौकिक दृष्टिवालों के लिये, अर्थात् उन लोगों के लिये जो व्यवहार में प्रवृत्त वर्तमान लौकिक जीवन को ही सर्वस्व समझते हैं, जो इसी को जीवन का आदि और अन्त मानते हैं, जो जीवन को भौतिक इन्द्रिय की एक अभिव्यक्ति देखते हैं, यह संसार सुखमय प्रतीत होता है। उनके लिये इन्द्रिय-सुख ही जीवन का रस और सार है। इस रस से मनुष्य को वञ्चित नहीं करना चाहिये। जड़वादी चार्वाक दार्शनिकों (Hedonsists) का ऐसा ही मत है। परन्तु पारमार्थिकदृष्टि (Transcendental view) वालों के लिये, जो वर्तमान जीवन को अनन्तप्रवाह का एक दृश्यमात्र मानते हैं, जिनके लिये जन्म आत्मा का जन्म नहीं है और मृत्यु आत्मा की मृत्यु नहीं है और जिनके लिये 'अहं' प्रत्यय रूप आत्मा शरीर से भिन्न एक विलक्षण, अजर, अमर, सच्चिदानन्द सत्ता है, संसार दुखमय प्रतीत होता है और इन्द्रिय सुख निस्सार तथा दुःख का कारण दिखाई पड़ता है। अनुभव की तरह सत्य के प्रति प्राणियों का आचार भी बहुरूपात्मक है - सत्य का जीवन लक्ष्य का - अनुभव ही बहुरूपात्मक नहीं है प्रत्युत इन अनुभवों के प्रति क्रिया रूप प्राणधारियों ने अपने जीवन निर्वाह के लिये अपने जीवन को निष्कण्टक, सुखमय और समुन्नत बनाने के लिये जिन मार्गो को ग्रहण कर रखा है, वे भी विभन्न प्रकार के हैं। कोई भोगमार्ग को कोई त्याग मार्ग को, कोई श्रद्धा मार्ग को, कोई भक्ति मार्ग को, कोई ज्ञान मार्ग को, कोई कर्मयोग को, कोई हठयोग को उपयोगी मार्ग बतलाते हैं।
ये समस्त मार्ग दो मूल श्रेणियों में विभक्त किये जा सकते हैं- एक प्रवृत्तिमार्ग दूसरा निवृत्तिमार्ग"। पहला मार्ग बाह्यमुखी और व्यवहार दृष्टिवाला है, दूसरा मार्ग अन्तर्मुखी और आध्यात्मिकदृष्टिवाला है और पारमार्थिक कल्पनाओं को लिये हुए है। पहला अहंकार, मूढ़ता और मोह की उपज है, दूसरा आत्मविश्वास, सत्ज्ञान और पूर्णता की उत्पत्ति है। पहला प्रेयस है दूसरा