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________________ अनेकान्त-57/3-4 अधिकारी का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसे 'दानपति' कहा जाता था। मन्दिर आदि धार्मिक स्थलों की देखभाल के लिए 'अग्रहारिक' नामक अधिकारी की नियुक्ति किये जाने का उल्लेख प्राप्त होता है। अग्रहारिक राज्य में इस बात का ध्यान रखता था कि राज्य द्वारा दिये गये दान का उचित व्यक्तियों अथवा व्यक्ति द्वारा उचित प्रयोग किया जा रहा है अथवा नहीं। दान प्राप्त करनेवाला व्यक्ति कहीं अपने अधिकारों से किसी कारणवश वंचित तो नहीं कर दिया गया है, यह देखना भी ‘अग्रहारिक' का कार्य था।” राज्य की सर्वागीण उन्नति तथा विकास-योजनाओं को क्रियान्वित करना राष्ट्र-विकास-विभाग का दायित्व था। राज्य की भौतिक श्रीवृद्धि तथा कृषि का विकास भी इसी विभाग के अन्तर्गत आता था। इस विभाग के मंत्री को 'राष्ट्रवर्धन' कहा गया है। 48 सन्दर्भ-संकेत । काणे, पी वी., धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-2, 1 628 क. अथर्ववेद, 3/5/6-6; पचविश ब्राह्मण, 19/1/4 2 वा रामायण, 2/100/30, महाभारत, विराटपर्व, 5/38 3. परमात्माशरण, प्राचीन भारत मे राजनीतिक विचार एव सस्थाग, १ 392 4 विष्णुस्मृति, 3/16, राजतरगिणी, 1/118/200 4/141 और आगे 5. जायसवाल, काशीप्रसाद, हिन्दू राजतत्र, पृ. 260 6 अल्टेकर, ए. एस., प्राचीन भारतीय शासन पद्धति, पृ 143 7 भट्ट, जनार्दन, अशोक के धर्मलेख, पृ 68-82 8 ला, एन. एन, इन्टरस्टेट रिलेशन इन ऐन्शियण्ट इण्डिया, ए 943 9. रघुवंश, 17/68 10 काणे, पी. वी., धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग-2, पृ 644-45 11. अर्थशास्त्र, 2/10 12. अल्टेकर, ए. एस , प्राचीन भारतीय शासन पद्धति, पृ 139 13 बैनीप्रसाद, दी स्टेट इन एन्शियण्ट इण्डिया, पृ. 212 14. एपि. इण्डि., जिल्द 3, पृ. 206, एपि इण्डि. जिल्द 9, पृ 64 15. अविमारक, अंक 3 16. शुक्रनीति, 2/119 17. मजूमदार, आर. सी., हिस्ट्री आव् बगाल, पृ. 284 18 मिश्र, सटामा, प्राचीन भारत में जनपद राज्य, पृ. 121
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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