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________________ अनेकान्त-57/3-4 शुक्र द्वारा वस्त्राध्यक्ष नाम से अभिहित किया गया है। राज्य की समस्त खानों पर सरकारी नियन्त्रण होता था, जिनमें कुछ खानों से राज्य की ओर से स्वयं खनन कार्य कराया जाता था तथा कुछ खानों को विभिन्न व्यवसायियों को उत्खनन-हेतु दिया जाता था और उनसे निश्चित धनराशि राज्य-कोष में जमा करा ली जाती थी। खनिज पदार्थो को खोदने, रत्न निकालने, मछली पकड़ने आदि के लिए राजकीय अधिकारियों की नियुक्तियाँ की जाती थीं। ये अधिकारी विभिन्न उद्योगों पर नियन्त्रण रखने के विचार से व्यवस्था संबंधी निर्देश जारी करते थे। सरकारी मुद्राओं का निर्माण भी व्यवसायियों द्वारा ठेके पर लिए जाने के उल्लेख मिलते हैं। 40 प्राचीन भारत में राज्य की जनता द्वारा निर्मित सामग्री का उन्हें उचित दाम दिलाने हेतु व्यापार-विभाग अथवा वाणिज्य-विभाग का गठन किया जाता था। राज्य के समस्त बाजारों पर पण्याध्यक्ष नामक अधिकारी का नियन्त्रण रहता था, जिसे हट्टपति एवं टांगिक नाम से भी जाना जाता था। इस विभाग का प्रमुख कार्य बाजारों अथवा हाटों की देखभाल करना, राज्य की सामग्री को लाभ पर बेचने की व्यवस्था करना तथा आयात और निर्यात एवं मूल्यों पर नियन्त्रण रखना था। ये विभाग दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं के मूल्य निर्धारित करते थे और अनुचित संचय और मुनाफाखोरी पर नियन्त्रण रखते थे।" व्यापार-विभाग द्वारा ही विभिन्न व्यापारिक वस्तुओं पर चुंगी वसूलने का कार्य भी किया जाता था, चुंगी वसूलने के लिए शुल्काध्यक्ष नामक अधिकारी के अधीन विभिन्न कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती थी। अभिलेखों में शुल्काध्यक्ष को 'शौल्लिक' भी कहा गया है। शौल्ल्कि पर कर अदायगी न करने वाले व्यापारियों का दण्ड के रूप में जुर्माना करने का अधिकार था। व्यापार-विभाग बाजारों पर पूर्ण नियन्त्रण हेतु माप-तौल अधिकारियों की नियुक्ति भी करता था, जो समय-समय पर बाट आदि का निरीक्षण करके उन पर सरकारी मुहर लगाते थे। राज्यों के विस्तार और विशाल साम्राज्यों की स्थापना के साथ न्याय का क्षेत्र भी व्यापक हो गया था। समस्त विवादों का समाधान अकेले राजा के
SR No.538057
Book TitleAnekant 2004 Book 57 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2004
Total Pages268
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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