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अनेकान्त-57/3-4
पास ही लकड़ियाँ जलती हुई चित्रित है। अग्रभूमि में नंदी, सिंह एवं चूहे को आरामदायक मुद्रा में दर्शाया गया है। पृष्ठभूमि में वृक्ष पर मोर चित्रित है।
शिव एवं शिव-परिवार से सम्बन्धित पहाड़ी चित्रकला की विभिन्न शैलियों में विभिन्न विषयों पर विभिन्न चित्रों को अलग-2 तकनीकी कुशलता एवं सूक्ष्मता के साथ चित्रित किया गया है।
लगभग 1800-05 ई. का एक चित्र कांगड़ा के राजा संसारचंद की कार्यशाला का परिणाम प्रतीत होता है। शिव-पार्वती व्याघ्रचर्म पर बैठे है। पार्वती एक और शिव की भांग छानने में मदद कर रही हैं तो दूसरी ओर मुढ़कर गोद में बैठे गणेश को घूर रही हैं चूहा, मोर, नंदी एवं सिंह पूर्ण आरामदायक मुद्रा में अंकित हैं। पार्वती सिर तक ओढ़नी एवं आभूषणों से युक्त दर्शाया गया है और शिव को व्याघ्र-चर्म ओढे हुए, साहार, तीसरे नेत्र, भुजबंद, रुद्राक्षमाला एवं अर्द्धचंद्रकला से सुशोभित चित्रित किया गया है।
पहाड़ी चित्रकला की लघु शैली में धार्मिक विषय भक्ति-भावना के साथ कोमल घरेलू विचारों की तकनीक को शुद्धता से जोड़ते हैं। ___ गुलरे के एक चित्र में शिव को कपड़ा सिलते एवं पार्वती को नरमुण्डों का हार बनाते चित्रित किया गया है। उनका पुत्र कार्तिकेय माता की हार बनाने में मदद कर रहा है एवं गणेश पिता के सर्पाहार के साथ खेल रहा है। वाहन नंदी, सिंह, मोर व चूहे को आरामदायक मुद्रा में चित्रित किया गया है।
उपर्युक्त चित्रों के अतिरिक्त पहाड़ी चित्रकारों ने शिव एवं शिव-परिवार विषय पर इतने अधिक चित्रों का निर्माण किया कि उनकी गिनती करना कठिन है। ये चित्र पहाड़ी चित्रकारों द्वारा इतने अधिक उपस्थित थे कि उन्हें पहाड़ी राज्यों की बड़ी-2 इमारतों में देखा जा सकता है। इन चित्रों की रचना चित्रकार भावनात्मक प्रवृत्तियों के कारण करते हैं न कि श्रद्धायुक्त भय के कारण। इन चित्रों के कारण ही हमें शिव-परिवार के विषय में, उनके विभिन्न क्रिया कलापों के विषय में, उनके रंग, रूप, आकार, वस्त्राभूषण, वाद्ययन्त्रों आदि के विषय में ज्ञान मिलता है। यद्यपि इन सभी का शब्दात्मक वर्णन हमें