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________________ अनेकान्त - 56/1-2 | अत: हरिवंशपुराण मे कुमारसेन के शिष्य के रूप में स्मरण किये गये प्रभाचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचंद से भिन्न कोई पृथक् व्यक्ति हैं। इसी प्रकार आदिपुराण मे चन्द्रोदय के कर्त्ता के रूप में स्मृत प्रभाचन्द्र भी, न्यायकुमुदचन्द्र के कर्ता प्रभाचन्द्र से अलग व्यक्ति हैं। बहुत सभव है कि हरिवंशपुराण और आदिपुराण में उल्लिखित प्रभाचन्द्र और उनका चन्द्रोदय एक ही व्यक्ति एव एक ही रचना हो और उन दोनों के गुरु भी एक ही कुमारसेन हो । उक्त तथ्यो को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है 88 (क) न्यायकुमुदचन्द आदि ग्रन्थों के रचयिता प्रभाचन्द्र के गुरु का नाम पद्मनंदि सैद्धान्तिक था, जबकि चन्द्रोदय के कर्ता के रूप में आदिपुराण में स्मृत प्रभाचन्द्र के गुरु का नाम कुमारसेन बताया गया है। (ख) हरिवंशपुराण ( रचना ई. 783) के कर्ता जिनसेन और आदिपुराण ( रचना ई. 838) के कर्ता जिनसेन दोनो समकालीन थे। हरिवशपुराण मे 'प्रभाचन्द्रोदयोज्ज्वल' इस श्लेषपद से चन्द्रोदय नामक रचना का सकेत किया गया है। यदि वह किसी रचना का ही नाम है तो यह चन्द्रोदय प्रभाचन्द्र के उस चन्द्रोदय नामक ग्रन्थ का स्मरण कराता है, जिसका उल्लेख आदिपुराणकार ने किया है। (ग) जैसा ऊपर सकेत किया गया है कि न्यायकुमुदचन्द्र में अनन्तवीर्य (ई. नवी शती) का दाय स्वीकार किया है। यदि आदिपुराण में उल्लिखित प्रभाचन्द्र और उनकी रचना चन्द्रोदय ही प्रकृत प्रभाचन्द्र और उनकी कृति न्यायकुमुदचन्द्र है, तो यह संगत प्रतीत नहीं होता कि आदिपुराणकार न्यायकुमुदचन्द्र का तो उल्लेख करें और न्यायकुमुदचन्द्र में ही जिनके प्रति बहुमान प्रकट किया गया हो ऐसे अनन्तवीर्य सरीखे यशस्वी ग्रन्थकार को भूल जायें। (घ) प्रभाचन्द्र ने अपने न्यायकुमुदचन्द्र में जयन्तभट्ट (ई. नवी शती का उत्तरार्ध) की न्यायमंजरी का एक श्लोक उद्धृत किया है। उन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड एवं न्यायकुमुदचन्द्र दोनों में जयन्तभट्ट के
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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