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________________ 86 अनेकान्त-56/1-2 यद्यपि यहाँ पर इस शब्द का अर्थ अलग है परन्तु यह चन्द्रोदय शब्द प्रभाचन्द्रकृत उस चन्द्रोदय नामक रचना का स्मरण कराता है, जिसका उल्लेख आदिपुराण में जिनसेन ने किया है। (2) आदिपुराण (रचना ई. 838) के प्रारम्भ में पूर्वाचार्यो को स्मरण करते समय आचार्य जिनसेन ने भी प्रभाचन्द्र नाम के एक कवि आचार्य के प्रति बहुमान प्रकट किया है। वे कहते हैं - चंद्राशुशुभ्रयशसं प्रभाचन्द्रकविं स्तुवे। कृत्वा चन्द्रोदयं येन शश्वदाइलादितं जगत्॥ चन्द्रोदयकृतस्तस्य यशः केन न शस्यते यदाकल्पमनाम्लानि सतां शेखरतां गतम्॥ प्रथम पर्व,श्लोक 47-48 अर्थात् चन्द्रमा की किरणो के समान श्वेत यश के धारक प्रभाचन्द्र कवि का स्तवन करता हूँ, जिन्होंने चन्द्रोदय की रचना करके संसार को आह्लादित (प्रसन्न) किया है। वास्तव में चन्द्रोदय की रचना करने वाले उन प्रभाचन्द्र आचार्य के कल्पान्त काल तक स्थिर रहने वाले तथा सज्जनो के मुकुटभूत यश की प्रशंसा कोन नही करता? अर्थात सभी करते हैं। उक्त स्मरण पद्य मे उल्लिखित कविकर्म रूप चन्द्रोदय प्रभाचन्द्र की यशस्वी रचना बतायी गयी है। इस रचना का जिनसेन की दृष्टि में इतना अधिक महत्त्व रहा है कि उसकी प्रशंसादि के विषय में दो पद्य (47-48) लिखे गये हैं। इन चन्द्रोदय नाम के कारण हरिवंशपुराण में स्मृत चन्द्रोदय (प्रभाचन्द्रोदयोज्ज्वल) नामक कृति की ओर बलात् ध्यान चला जाता है। (3) जैन साहित्य में एक प्रभाचन्द्र (ई. 950-1020) प्रथित तर्क ग्रन्थकार हैं। इनकी न्यायकुमुदचन्द्र तथा प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि तार्किक कृतियाँ प्रसिद्ध एवं उपलब्ध हैं। इनके गुरु का नाम पद्मनन्दि सैद्धान्तिक था। प्रभाचन्द्र ने न्यायकुमुदचन्द्र (पांचवे परिच्छेद का प्रारंभ) में अनन्तवीर्य (ई. नवी शती) का कृतज्ञता पूर्वक स्मरण किया है और उनकी युक्तियाँ बहुत महत्त्वपूर्ण बतलायीं हैं। उन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड मे विद्यानन्द का भी स्मरण किया है। यथा -
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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