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________________ अनेकान्त-56/1-2 विक्रमादित्य की मृत्यु हुई थी। 67 - जैनधर्म का मौलिक इतिहास, पृ. 546, आचार्य हस्तिमल्ल हाल सातवहन आंध्र सातवाहन वंश का सातवां राजा था जिसका समय डॉ. ज्योति प्रसाद के अनुसार 20-24 ई. के लगभग निर्धारित किया जाता है। प्राचीन जैन साहित्य में सात वाहन राजाओं के अनेक उल्लेख मिलते है और उसमें से अनेकों का जैन होना भी सूचित होता है। इन जैन राजाओं में 'गाहासतसई' के रचयिता हाल के होने की संभावना है। गाहासतसई प्राकृत काव्य परम्परा में मुक्तक के रूप मे महाराष्ट्री प्राकृत में लिखा गया है। इसमें जैन विचारधारा का प्रभाव परिलक्षित होता हैं। सातवाहन राज्य में प्राकृत भाषा का ही प्रभाव था। ये राजा स्वयं विद्वान या विशेष विद्यारसिक नहीं थे किन्तु विद्वानों का आदर करते थे। जैनाचार्य शर्ववर्म द्वारा कातंत्र व्याकरण तथा एक अन्य जैनाचार्य काणभिक्षु या काणभूति द्वारा प्राकृत के मूल कथा ग्रंथ की रचना और इसके आधार पर 'गुणाढ्डयकृत' वृहत्कथा की रचना इसवीं प्रथम शताब्दी में इन्हीं राजा के प्रश्रय में हुई प्रतीत होती है। इनके राज्य में मुनियों का स्वच्छंद विहार था। उन्हीं के काल में जैनसंघ दिगम्बर व श्वेताम्बर सम्प्रदायों में विभक्त हुआ और उनका राज्य उन दोनों सम्प्रदायों के साधुओं का संधिस्थल था। दिगम्बर परम्परा के जैन आगमों का सर्वप्रथम संकलन एवं लिपिबद्धीकरण भी इन्हीं के काल में और सम्भवतया इन्हीं के राज्य में हुआ था । - भारतीय इतिहास एक दृष्टि पृ. 89-90 डॉ. ज्योति प्रसाद जैन वृहत्कल्पभाष्य की एक अनुश्रुति के अनुसार उत्तरापथ मथुरा के 96 ग्रामो में लोग अपने घरों व द्वारों के ऊपर तथा चौराहों पर जिनमूर्तियों की स्थापना करते थे। शक एवं कुषाण काल में जैनधर्म का बड़ा ही व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ था। इसका भी समय लगभग प्रथम शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। - भारतीय इतिहास एक दृष्टि पृ. 92 डॉ. ज्योति प्रसाद जैन प्रथम शताब्दी के भारतीय जन तथा विदेशी जैनधर्म के भक्त थे। इसका उल्लेख मथुरा से प्राप्त शिलालेखों में मिलता है। उनकी स्त्रियां भी स्वतंत्रता
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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