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________________ अनेकान्त-56/1-2 65 साहित्यिक आचार्य ___ आर्य ख़पुट की ही तरह आर्य पादलिप्त महान प्रतिभाशाली आचार्य माने गये है। कोशलनगरी के महाराज विजयवर्मा के राज्य में फुल्ल नामक बुद्धिमान और दानवीर श्रेष्ठी रहता था। उसकी पत्नी का नाम प्रतिकाना था। वह रूप, शील और गुण की आधारभूमि होकर भी पुत्ररहित थी। काफी तपस्या के उपरान्त नागेन्द्र नामक पुत्र का जन्म हुआ। बाद में वही पादलिप्त के नाम से प्रसिद्ध हो गये। ईसवी की प्रथम शताब्दी आचार्य पादलिप्त सूरि का जन्म समय माना गया है। आचार्य पादलिप्त चमत्कारिक विद्याओं के स्वामी थे। पैरों पर औषधियों का लेप लगाकर गगन में यथेच्छ विचरण की उनमे असाधारण क्षमता थी। वे सरस काव्यकार और सातवाहन वशी राजा हाल की सभा के अलंकार थे। आचार्य पादलिप्त के गुरू आचार्य नागहस्ती थे। आचार्य पादलिप्त का जन्म कोशल (अयोध्या) में हुआ था। वहाँ उस समय विजय ब्रह्म का राज्य था। पादलिप्त के पिता का नाम फूलचंद और माता का नाम प्रतिभा था। पादलिप्त सूरि अपने युग मे विश्रुत विद्धान थे। वह युग प्राकृत का उत्कर्ष काल था। पादलिप्त सूरि ने तरंगवइ (तरंगवती) कथा का निर्माण प्राकृतभाषा में किया। 'निर्वाण कलिका' और 'प्रश्न-प्रकाश' नामक कृतियों के रचनाकार भी पादलिप्त सूरि थे। इन तीनों कृतियों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है- (1) तरगवती कथा प्राकृत की सरस रचना है। जैन प्राकृत कथा साहित्य का यह आदि ग्रंथ है। अनेक जैन विद्वानों ने दम कथा का अपने ग्रंथों में उल्लेख किया है। आचार्य शीलाक चउपन्न महापुरुष चरिय ग्रंथ मे लिखते है कि सावस्थि कला तं वत्थि लक्खणं जेन दीसई फुडत्थं। पालित्तयाइविरइय तरंग वइयासु य कहासु॥ चउप्पन महापुरुष चरिय (123) इस ग्रन्थ में कलाशास्त्र और लक्षणशास्त्र का सर्वाग विवेचन कथा में है। आगम साहित्य और चूर्णि में इस कथा को लोकोत्तर धर्म कथा कहा है। लेकिन वर्तमान मे यह ग्रन्थ उपलब्ध नही है। तरगलोला ग्रंथ के रचनाकार नेमिचद्र गणि के मतानुसार तरंगवती कथा जनभोग्य नहीं किन्तु विद्वद्भोग्य थी।
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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