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अनेकान्त-56/1-2
चरितभत्ति- इस भक्ति में सामायिक आदि पाचो चारित्रो का तथा 10 धर्मो का प्रमुखतः प्रतिपादन है। जोइभत्ति ( योगी भक्ति)- इसकी 23 गाथाएं है। योगियो की ऋद्धी-सिद्धि का वर्णन है। आइरियभत्ति (आचार्य भक्ति)- इसकी 10 गाथाएं हैं। आचार्य के गुणों का वर्णन है। निव्वाणभत्ति- इस कृति के अन्तर्गत 27 गाथाओं में निर्वाण प्राप्त तीर्थकरों की स्तुति एवं निर्वाण स्वरूप का वर्णन है। पंचगुरूभत्ति- इसके सात पद्य है। इन पद्यो मे परमप्ठी पुरुपो को स्तवना पूर्वक नमन किया गया है। तित्थयरभत्ति (तीर्थकर स्तुति )- इसमें प्रमुखतः तीर्थकरो का स्तवन है। इसमें आठ पद्य है। प्रत्येक तीर्थकर को नामोल्लेखपूर्वक वदन किया गया है। बारसाणुपेक्खा (द्वादशानुप्रेक्षा)- यह 9। गाथाओं का लघु ग्रंथ है। इसमे अनित्य, अशरण, भव (लोक), एकत्व, अन्यत्व, संसार, अशुचित्व, आश्रव, सवर, निर्जरा, धर्म और बोधि इन बारह भावनाओ का सम्यक प्रतिपादन है। वैराग्य रस से परिपूर्ण यह कृति प्रभावक है। 12 भावनाओ का निरूपण कई श्रावकाचार ग्रन्थो मे प्राप्त है। आचार्य आर्यमंछु और नागहस्ती
इन दोनो आचार्यो को दिगम्बर परम्परा और श्वेताम्बर परम्परा मे उल्लिखित किया गया है। श्वेताम्बर परम्परा में आर्यमक्षु को आर्यमगु नाम से व्यक्त किया गया है। आर्यमंक्षु और नागहस्ती क्षमाश्रमण और महावाचक के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्द्रनन्दी श्रुतावतार में इन दोनो को गुणधराचार्य का शिष्य और तिलोयपण्णत्तिकार यतिवृषभ आचार्य का गुरू बताया गया है। डॉ. ज्योति प्रसाद जैन ने नागहस्ती को 130-132 तथा आर्यमक्षु को नागहस्ती से पूर्ववर्ती मानकर उनका समय ईसवी सन 50 निर्धारित किया है। श्वेताम्बर परम्परा में पर्याप्त अन्तर बताया गया है।