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अनेकान्त-56/1-2
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पचास्तिकाय है। धर्म, अधर्म, आकाश, पुदगल और जीव इन पांचो अस्तिकायों के साथ काल द्रव्य की व्याख्या भी इस ग्रंथ मे है। ग्रंथ में प्रथम प्रकरण में छह द्रव्यो का वर्णन, और द्वितीय प्रकरण में नव पदार्थो की व्याख्या है।
जैन दर्शन सम्मत द्रव्य विभाग की सुस्पष्ट और सुसम्बद्ध व्याख्या इस ग्रंथ से समझी जा सकती है। सप्तभगी का नाम निर्देश भी ग्रंथ के प्रथम प्रकरण मे उपलब्ध है। आचार्य अमृतचद्र की पचास्तिकाय टीका इस ग्रंथ के रहस्यों को समझने के लिए परम सहायक है। नियमसार- नियमसार ग्रंथ में 12 अधिकार हैं। कुल गाथा संख्या 187 है। ग्रंथगत अधिकारों के नाम इस प्रकार हैं-(1) जीवअधिकार, (2) अजीव अधिकार, (3) शुद्ध भाव, (4) व्यवहार चरित्र, (5) परमार्थ प्रतिक्रमण, (6) निश्चय प्रत्याख्यान, (7) परमालोचन, (8) शुद्ध-निश्चय प्रायश्चित, (9) परम समाधि, (10) परमभक्ति, (11) निश्चय परमावश्यक, (12) शुद्धोपयोग।
इन अधिकारों मे ध्यान, प्रत्याख्यान, प्रतिक्रमण आदि छह आवश्यक का वर्णन है। अध्यात्म बिन्दुओ के समझने के लिए ये ग्रथ उपयोगी हैं। मोक्ष मार्ग मे नियम से (आवश्यक) करणीय ज्ञान दर्शन, चरित्र की आराधना पर बल दिया है। इनसे विपरीत आचरण को हेय बतलाया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार सर्वज्ञ भी निश्चय नय से केवल आत्मा को जानते हैं, व्यवहार नय से सबको जानते हैं। अष्टपाहुड- आचार्य कुन्दकुन्द 84 पाहुडो (प्राभृतों) के रचनाकार थे पर वर्तमान में उनके पूरे नाम भी उपलब्ध नही हैं। पाहुड साहित्य मे दंसण पाहुड आदि आठ पाहुड प्रमुख माने गए है। उनके रचनाकार भी कुन्दकुन्द है। पाहुड ग्रथों का परिचय इस प्रकार है(1) सण पाहुड- इसमें कुल 36 गाथाए है। इसमें सम्यक दर्शन का विवेचन है। (2) चरित्त पाहुड- इसमें कुल 44 गाथाएं है। श्रावक और मुनि धर्म का
• संक्षिप्त वर्णन है।