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अनेकान्त -56/1-2
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कुवलयमाला की प्रणयकथा तथा लीलावती और उसकी सखियों की प्रेम कथाएँ प्रमुखरूप से कही गई हैं। अर्थापार्जन की कथाओं में चारुदत्त की साहसिक यात्रा, इभ्यपुत्रों की प्रतिज्ञा . लोभदेव की रत्नद्वीप यात्रा एवं पोतवणिकों के आख्यान हैं। यहीं पर मार्ग की थकान दूर करने वाली कथाएँ भी कही गई हैं। इन कथाओ से सस्कृतियों का आदान-प्रदान भी होता था। ।
दूसरे अध्याय में प्राकृत की धर्म और नीति संबंधी कथाएँ संकलित की गई हैं। इसमें धूर्ता और पाखण्डियो की कथाएँ, मूर्खा और विहाँ की कथाएँ, बुद्धिचमत्कार की कथाएँ पचतत्र और बौद्धजातका की कथाओं से जैन कथाओं की तुलना एवं वैराग्यवर्धक जैनकथाएँ प्रमुख रूप से दी गई हैं। तीसरे अध्याय में वसुदेव हिण्डी और बृहत्कथा की कथाओं की तुलना को गई है। चौथे अध्याय में जैन कथा साहित्य को लौकिक कहानियों का अनुपम भंडार कहा गया है। प्राकृत साहित्य में रोचक और मनोरजक लोककथाएँ, लोकगथाएँ, नीतिकथाएँ, दंतकथाएँ, परीकथाएँ, प्राणिकथाएँ, कल्पित कथाएँ, दृष्टान्त कथाएँ, लघुकथाएँ, आख्यान और वार्ताएँ उपलब्ध हैं, जो भारतीय संस्कृति की अक्षय निधि हैं।
उपर्युक्त विवरण डॉ. जैन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का दिग्दर्शन मात्र है। वे बीसवीं शताब्दी के ऐसे विद्वान थे, जो सदी के सभी दशकों में समाज को राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नई दिशा देने में आगे रहे। 28 जुलाई 1994 को 85 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनके निधन से समाज का एक मूर्धन्य विद्वान चला गया। ऐसे प्रतिभाशाली विद्वान् को मेरा श्रद्धापूर्वक शत-शत नमन।
प्राध्यापक, प्राकृत एवं जैनशास्त्र, प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान,
वैशाली (बिहार)-844128