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अध्यात्म-पद
चित चिंत के चिदेश कब, अशेष पर बमू। दुखदा अपार विधि-दुचार-की चमू दमू॥ चित.॥
तजि पुण्य-पाप थाप आप, आप में रमूं। कब राग-आग शर्म बाग दाघनी शमूं॥ चित.॥
दृग-ज्ञान-भान तैं मिथ्या अज्ञानतम दमूं। कब सर्व जीव प्राणिभूत, सत्त्व सौं छv॥ चित.॥
जल-मल्ललिप्त-कल सुकल, सुबल्ल परिन। दलके त्रिसल्लमल्ल कब, अटल्लपद पम्॥ चित.॥
कब ध्याय अज-अमर को फिर न भव विपिन भमूं। जिन दूर कौल 'दौल' को यह हेतु हौं नमूं॥ चित.॥५
-कविवर दौलतराम