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________________ 86 अनेकान्त-56/3-4 उपसंहार ध्यान को व्यवहारिक जीवन में भी उपयोगी बनाया जा सकता है। यह मात्र सिद्धान्त नहीं है तथा हमारी पूजा प्रक्रिया में इसीलिए सम्मिलित किया जाता है कि यह हमारे जीवन में उपयोगी है। -आचार्य तुलसी द्वारा प्रवर्तित अनुप्रेक्षा ध्यान के द्वारा बहुत लोग स्वस्थ्य होते देखे गए हैं। इसी प्रकार आचार्य गोसन द्वारा बौद्ध विपश्यना पद्धति को व्यवहार में चरितार्थ करके सिद्ध किया जाता है। __ मिथ्यादृष्टि से हटकर सम्यग्दृष्टि में आना ही ध्यान की प्रक्रिया है। ध्यान से आध्यात्मिक परम सुख की प्राप्ति होती है साथ ही साथ शारीरिक और मानसिक विकास भी उत्तरोत्तर होता रहता है। काया की स्थिरता, मन की निर्मलता, वचन की मधुरता, हृदय की पवित्रता ध्यान से ही प्राप्त होती है। दशा को बदलने के लिए दिशा को बदलना होगा। दिशा का परिवर्तन आचार-विचार-उच्चार की निर्मलता से होता है। चित्तशुद्धि से कर्म-मलादि का शोधन होता है। जैसे-मैले-कुचैले वस्त्र को पानी से, लोहे को अग्नि से, कीचड़ को सूर्य किरणों से शोधन किया जाता है वैसे ही ध्यान रूपी पानी, अग्नि, सूर्य से कर्ममल का परिशीलन (छानन) किया जाता है। अतः ध्यानाग्नि से ही कर्म ईधन को जलाया जा सकता है। ध्यान जीवन परिवर्तन की परम औषधि है। जन्म मरण का रोग भयंकर है। द्रव्यरोग की दवा डॉक्टर के पास है, भावरोग की नहीं। वह तो ध्यानयोग के ही पास है। सनत्कुमार चक्रवर्ती, आदि भव्यात्माओं ने ध्यान बल से भावरोग को नाश कर किया। समत्व योग की साधना ही ध्यान की साधना है। ध्यान का आधार समभाव है और समभाव का आधार ध्यान है। प्रशस्त ध्यान से केवल साम्य ही स्थिर नहीं होता, अपितु कर्ममल से मलिन जीवन की शुद्धि होती है। अतः ध्यान किया नहीं जाता वह फलित होता है। हमारे शारीरिक मानसिक सन्तुलन दशा का परिणाम ही ध्यानावस्था है। वर्तमान कालीन परिस्थिति में शान्ति पाने के लिए एकमात्र परम औषधि है 'ध्यान' । ध्यान की प्रक्रिया से आत्मिक शान्ति मिलती है।
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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