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________________ 84 अनेकान्त-56/3-4 'अचेतन मन' और रंगशाला में प्रवेश करने की भांति 'चेतनोन्मुख मन' है। मन को बर्फ की उपमा दी है। मनोवैज्ञानिकों ने मन की वृत्ति तीन प्रकार की बताई है, जैसे कि-(1) ज्ञानात्मक, (2) वेदनात्मक और (3) क्रियात्मक। ध्यान मन की क्रियात्मक वृत्ति है एवं चेतना की सबसे अधिक व्यापक क्रिया का नाम है। ध्यान मन की वह क्रिया है जिसका परिणाम ज्ञान है। प्रत्येक प्रकार के ज्ञान के लिए ध्यान की आवश्यकता है। जागृत अवस्था में किसी न किसी वस्तु पर ध्यान किया जाता ध्यान के सोपान-आगम एवं ग्रन्थों के कथनानुसार ध्यान के दो सोपान माने गये हैं-(1) छद्मस्थ का ध्यान और (2) जिन का ध्यान। मन की स्थिरता छद्मस्थ का ध्यान है जो अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है और जिन का ध्यान काया की स्थिरता है। ध्याता धर्म व शुक्ल ध्यानों को ध्याने वाले योगी को ध्याता कहते हैं। शुक्लध्यान तो पूर्वविद् को ही होता है परन्तु धर्मध्यान पूर्वविद को भी होता है और अल्पश्रुत को भी। महापुराण के अनुसार यदि ध्यान करने वाला मुनि चौदहपूर्व का या दशपूर्व का या नौ पूर्व का जानने वाला हो तो ध्याता सम्पूर्ण लक्षणों से युक्त कहलाता है। अल्पश्रुतज्ञानी अतिशय बुद्धिमान और श्रेणी से पहले धर्मध्यान धारण करने वाला उत्कृष्ट मुनि भी उत्तम ध्याता कहलाता है। द्रव्य संग्रह के अनुसार पांच समिति और तीन गुप्ति को प्रतिपान करने वाले सारभूत श्रुतज्ञान से भी ध्यान होता है। चारित्रसार के अनुसार प्रशस्त ध्यान का ध्याता मन, वचन, काय को वश में रखने वाला होता है। "मुमुक्षुर्जन्मनिर्विण्णः शान्तचित्तोवशी स्थिरः। जिताः संवृतो धीरो ध्याता शास्त्रे प्रशस्यते।। जो मुमुक्षु हो, उत्तम संहनन वाला हो, संसार से विरक्त हो, आर्त-रौद्र ध्यान से दूर, अशुभ लेश्याओं से रहित, लेश्याओं की विशुद्धता से अवलम्बित,
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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