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अनेकान्त-56/3-4
यथा
इस प्रकार जैन दर्शन में प्रमाण की विस्तृत चर्चा की गई है मोक्षमार्ग में यह उपादेय है।
सन्दर्भ
1 छहढाला 1/1 2 तत्त्वार्थसूत्र 1/1 3 वही 1/2 4 वही 1/3-5 6 वही 1/6 7 तर्कभाषा पृष्ठ 12-17 (साहित्य भण्डार सस्करण) 8 सर्वार्थसिद्धि 1/10/98/2 9 तिलोय पण्णत्ति 1/83 10 श्लोकवार्तिक 3/1/10/38/65 11 स्वपरावभासक यथा प्रमाण भुवि बुद्धिलक्षणम्, वृ स्व 63 12 प्रमाण स्वपराभासिज्ञान बाधविवर्जितम् -न्याय0-1 13 'व्यवसायात्मक ज्ञानमात्मार्थग्राहक मतम्' -लघीयस्त्रय 60 14 'प्रमाणभविसवादिज्ञानमनधिगतार्थ लक्षणत्वात्' - अष्टमहस्री पृ 174 15 ‘स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मक ज्ञान प्रमाणम्' परीक्षामुख - 1-1 16 सम्यग्ज्ञान प्रमाणम् स्वार्थव्यवसायात्मक सम्यग्ज्ञानम् -प्र प्र 53 17 श्लोक वार्तिक 3/1/10/126-1272119 (जैन सि को 3/4 144) 18 धवला 9/4, 1, 45, 142. 2 (जै सि को. 3/4 144) 19 जैन न्याय (भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन) प्रप्ट 110 20 तत्त्वार्थसूत्र 1/9-12 21 वही 1/13 22 प्रमाण परीक्षा 23. न्याय वि. टी 1/3,115/25 (जै सि कोष 3/123) 24 धवला 9/4.1 45/142 (वही 9 3/123)
अध्यक्ष-संस्कृत विभाग, कुन्दकुन्द जैन (पी. जी.) कालेज
खतौली-251201 (उ. प्र.)