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________________ प्राचीन भारत में गुप्तचर-व्यवस्था -डॉ. मुकेश बंसल प्राचीन भारतीय साहित्य में गुप्तचर-व्यवस्था को राजनीति के संचालन के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में स्वीकार किया गया है। गुप्तचरों के माध्यम से ही राजा बाह्य तथा आन्तरिक भेदों की जानकारी प्राप्त करके उनके निराकरण का उपाय करने में समर्थ होता है। कालिदास ने गुप्तचरों को प्रकाश की किरणें कहा है। जिनके द्वारा शत्रु-राज्य की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त होती है।' किरतार्जुनीय महाकाव्य में कहा गया है कि राजा को चाहिए कि वह उत्तम चरित्रवाले, विश्वासी और उन्नति करनेवाले गुप्तचरों की नियुक्ति करके उनके माध्यम से शत्रु-पक्ष के समाचारों की जानकारी प्राप्त करे। वल्हण ने गुप्तचरों को राजा के नेत्र माना है क्योंकि वे ही उन्हें सभी रहस्यों की जानकारी देते हैं। जानकीहरण महाकाव्य में गुप्तचरों के संबंध में कहा गया है कि जो छिपकर विचरण करे, वही गुप्तचर है। वेश बदलकर या गुप्तरूप से विपक्षी के राज्य, सेना व नीतियों की जानकारी प्राप्त कर अपने स्वामी से निवेदन करना ही गुप्तचर का कार्यक्षेत्र है क्योंकि गुप्तचर से प्राप्त वृत्तांत पर ही राजा अपनी भावी नीति का निर्धारण करता है। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के शासन के प्रति लोगों की चित्तवृत्ति जानने के लिए निपुणक नामक गुप्तचर की नियुक्ति की थी। राम ने दुर्मुख नामक गुप्तचर को अपने ही शासन की प्रतिक्रिया जानने के लिए नियुक्त किया था। गुप्तचरों के लिए विभिन्न नाम प्रयुक्त किये गये हैं। अर्थशास्त्र में इन्हें गूढपुरुष, शुक्रनीति में गूढाचार तथा अविमारक में चर एवं रात्रिचर नाम से पुकारा गया है।' गुप्तचर छद्म वेश में रहकर शत्रु-पक्ष के रहस्यों का उद्घाटन तथा राजा को गुप्त सूचनाएँ प्रदान करने के कारण राज्य की सुरक्षा में उपादेय
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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