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________________ 52 अनेकान्त-56/3-4 श्रावक जीवहिंसा के कारणभूत सेवा, कृषि, वाणिज्य आदि आरंभ से निवृत्त होता है। स्वामी कार्तिकेय ने इसमें कृत, कारित एवं अनुमोदना का भी समावेश किया है। आरंभविनिवृत्त श्रावक आजीविका छोड़कर पूर्व अर्जित सीमित सम्पत्ति से ही अपना जीवन-यापन करता है। 9. परिग्रहविरति प्रतिमा - समन्तभद्राचार्य के अनुसार जो व्यक्ति बाह्य दशधा परिग्रहों में ममत्व छोड़कर निर्ममत्व से प्रेम करता है, वह परिग्रहविरति प्रतिमा का धारी श्रावक है। वसुनन्दि ने भी कहा है कि जो वस्त्र मात्र परिग्रह को रखकर वाकी परिग्रह का त्याग कर देता है तथा वस्त्र में भी ममत्व नही रखता है, वह नवमी प्रतिमा का धारक श्रावक है। नवमी प्रतिमा का धारक यद्यपि सब कुछ पत्रों को सौपकर गृहस्थी के कार्यों से मुक्त हो जाता है किन्तु उदासीन होकर घर में ही रहता है तथा पुत्रादि के द्वारा परामर्श मागने पर धर्मानुकूल परामर्श भी देता है। परन्तु वह सन्तोष की पराकाष्ठा में जीता है। गुणभूषण ने नवमी प्रतिमाधारी के लिए वस्त्र के अतिरिक्त सभी परिग्रह के त्याग का विधान किया है तथा प. दौलतराम ने अपने क्रियाकोष में उसे काष्ट एवं मिट्री का पात्र रखने और धातुपात्र का त्याग करने का स्पष्ट कथन किया है।" 10. अनुमति विरति प्रतिमा – दसवीं प्रतिमा का धारी व्यक्ति प्रायः घर में न रहकर मन्दिर, चैत्यालय आदि एकान्त स्थानों में रहता है तथा स्वाध्याय में अपना मन लगाता है। वह घर या साधर्मी बन्धु का निमन्त्रण मिलने पर ही भोजन ग्रहण करता है। समन्तभद्राचार्य के अनुसार आरंभ, परिग्रह अथवा लौकिक कार्यो में जिसकी अनुभोदना भी नही होती है तथा जो समभाव का धारक है, वह अनुमतिविरत श्रावक कहलाता है। पुरुषार्थनुशासन नामक श्रावकाचार में दसवीं प्रतिमाधारी के पाप कार्यो या गृहारंभों में अनुमति देने का निषेध तथा पुण्य कार्यो में अनुमति देने का विधान विस्तार पूर्वक किया गया है।" 11. उद्दिष्टत्याग प्रतिमा – यह श्रावक की उत्कृष्टतम भूमिका है। ग्यारहवी प्रतिमा का धारी घर से मुनियों के निवास वाले वन में जाकर और गुरू के
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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