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________________ अनेकान्त-56/3-4 आगे पूज्य कूट है निरजर, मुनि सुव्रत जी पुजें जहाँ पर । ललित कूट चन्दा प्रभु पुजते, सब जन पूजन - वन्दन करते ।। 17 ।। विद्युतवर है कूट जहाँ पर, पुजते श्री शीतल जी जिनवर । कूट स्वयंभू प्रभु अनंत की, वन्दन करते जैन संत भी । । 18।। धवलकूट पर चिन्हित हैं पग, संभव जी को पूजे सब जग । कर आनन्द कूट पर वन्दन, अभिनन्दन जी का अभिवन्दन ।।19।। धर्मनाथ की कूट सुदत्ता, पुजती है जिसकी गुणवत्ता । अविचल कूट प्रणत जन सारे, सुमतनाथ पद चिन्ह पखारे । 120 ।। शान्ति कूट की शान्ति सनातन, करते शान्तिनाथ का वन्दन । कूट प्रभास वाद्य बजते हैं, जहाँ सुपारस जी पुजते हैं ।। 21 ।। कूट सुवीर विमल पद-वन्दन, जय-जय कारा करते सब जन । अजितनाथ की सिद्ध कूट है, जिनके प्रति श्रद्धा अटूट है ।। 22 ।। स्वर्ण कूट प्रभु पारस पुजते, झाँझर घंटे अनहद बजते । पक्षी तन्मय भजन - गान में, तारे गाते आसमान में ।। 23 ।। तुम पृथ्वी के भव्य भाल हो, तीन लोक में बेमिसाल हो । कट जायें कर्मों के बन्धन, श्री जिनवर का करके पूजन ।। 24 ।। हे ! सम्मेद शिखर बलिहारी, मैं गाऊँ जयमाल तिहारी । अपने आठों कर्म नशाकर, शिव पद पाऊँ संयम धरकर । । 25 ।। तुमरे गुण जहान गाता है, आसमान भी झुक जाता है । है यह घरा तुम्हीं से शोभित, तेरा कण-कण है मन मोहित । । 26 ।। भजन यहाँ गाती हैं टोली, जिनवाणी की बोली, बोली । तुम कल्याण करत सब जग का, आवागमन मिटे भव-भव का । 1 27 ।। नमन शिखर जी की गरिमा को, जिन वैभव को, जिन महिमा को । संत- मुनी अरिहंत जिनेश्वर, गए यहीं से मोक्ष मार्ग पर । । 28 ।। भक्तों को सुख देने वाले, सब की नैया खेने वाले । मुझको भी तो राह दिखाओ, भवसागर से पार लगाओ ।। 29 ।। हारे को हिम्मत देते हो, आहत को राहत देते हो । भूले को तुम राह दिखाते, सब कष्टों को दूर भगाते ।। 30 ।। 3
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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