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________________ अनेकान्त-56/1-2 4 नहीं होता । + 117 वह मांस शब्द भी 'माम् स:' खण्ड (अवयव) के द्वारा मानो सूचित करता है कि आज मैं जिसके मांस को खा रहा हूँ, भविष्य में वह भी मुझे खावेगा। ' मनु का मानना है कि जो आहार के लिए मास का अपहरण करता है, अगले जन्म में गिद्ध की योनि प्राप्त करता है" और जो हिंसा करता है, चह क्रव्याद अर्थात् राक्षस अथवा कच्चा मास खाने वाले भेड़िया आदि की योनि में जन्म लेता है।' जो व्यक्ति मांसाहार के लिए सिह आदि हिसक जन्तुओं का शिकार नहीं करते. परन्तु अपने सुख की कामना से भेड़, बकरा, सुअर. गौ और मृग आदि अहिंसक प्राणियों की बलि चढ़ाने के रूप मे हिमा करते है, वे भी कभी सुखी नहीं होते। इसके विपरीत जो व्यक्ति प्राणियो का वध कभी नहीं करना चाहते और न कभी उन्हे बन्धन में डालने का विचार करते हैं, वं सब के प्रिय होकर निरन्तर सुख ही सुख प्राप्त करते है।' इतना ही नही. मन में भी हिंसा की भावना न लाने वाला व्यक्ति जो कुछ भी सोचता है, जो कुछ भी करता है या करना चाहता है अथवा निश्चय करता है, संकल्प करता है, उसे वह अविलम्ब प्राप्त कर लेता है। ' 8 यदि मांसाहार हिसा के कारण ही दोषपूर्ण है, तो यह प्रश्न हो सकता है कि यदि मांस त्रिकोटि परिशुद्ध है अर्थात् जिस मास के लिए मैंने पशुवध नही किया है, न मुझे आहार देने के लिए ही पशु की हिसा की गयी है और न मेरे समक्ष पशुवध हुआ है, उस स्थिति में तो वह (मास) अभक्ष्य नही होना चाहिए | इस प्रकार के प्रश्न के समाधान के क्रम में आचार्य मनु का मानना है कि केवल वधकर्ता ही हिंसा- पाप का भागी नही होता, अपितु उसके साथ-साथ वध करने की अनुमति देने वाला, मृतपशु के मांस को खण्ड-खण्ड करने वाला, बेचने वाला, खरीदने वाला, पकाने वाला, परोसने वाला, खाने वाला, ये सभी आठों हिंसा करेन के भागीदार होते है। योग सूत्रकार महर्षि पतञ्जलि ने भी हिंसा के भेद-प्रभेद करते हुए यह स्वीकार किया है कि न केवल वधकर्ता हिंसाजन्य पाप का भागी होता है अपितु हिंसा के लिए प्रेरणा देने वाला और उसका समर्थन करने वाला भी समान रूप से हिंसा में भागीदार
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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