SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त-56/1-2 है कि जैन धर्म की अहिंसा मात्र धार्मिक न होकर व्यावहारिक भी है। सन्दर्भ । सव्वे जीवा वि इन्छन्ति जीविउ न मरिजिउ।. 2 अमेध्यमध्ये कीटस्य, सुरेन्द्रस्य सुरालये। समाना, जीविताकाक्षा सम मृत्युभयोर्द्वयोः।। -आचार्य हेमचन्द्र. 3 सव्वेसि जीविय पिय - आचारागसूत्र 1-2 92-93 4 जह मम न पिय दुक्ख, जाणिय एवमेव सबजीवाण। 5 स्वीकीय जीवित यद्धत्सर्वस्य प्राणिनइ प्रियम्। तद्धदेतत्परस्यापि ततो हिसा परित्यजैत्।। - उपासकाध्ययन कल्प 24 श्लोक 292, पद्मपुराण पर्व 14 श्लोक 186 6 एकाजीवदयेकत्र परत्र सकल: क्रिया। पर फल तु पूर्वत्र कृषेश्चिन्तामणिरिव।। पद्मपुराण पर्व 14, श्लोक 361 7 आयुष्मान्सुभगः श्रीमान्सुरूपः कीर्तिमान्नरः। अहिसाव्रतमाहात्म्यादैकस्मादेव जायते।। 362।। -उपासकाध्ययन कल्प 26 ४. यत्खलु कषाययोगात्प्राणाना द्रव्यभावरूपाणाम। व्यपरोपणस्थ करण सुनिश्चिता भवति सा हिसा ।। ___-पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, श्लोक 43 9 उपासकाध्ययन सम्पादक की प्रस्तावना, प। 68-69. 10 तत्वार्थसूत्र 13 11 स्वयमेवात्मनात्मान हिनस्त्यात्मा प्रमादवान्। पूर्व प्राण्यन्तराणा तु पश्चात्स्याद्धा न वा वधः।। 12 समयसार, गाथा 262 की टीका, 13 सागारधर्मामृत, अध्याय 4, श्लोक 8910 14 देवतातिथिस्त्यिर्थ मन्त्रोषधिभयायवा। न हिस्या: प्राणिनः सर्वे अहिसानाम सत व्रतम्।। सराण. 15.112 -अमितगति श्रावकाचार परि 6. उपासकाध्ययन कल्प 2 15 मरद व जियदु व जीवो अयदाचारस्स णिच्छिदा हिसा। पयदस्स णस्थि बन्धो हिसामेत्तेण समिदस्स।। 16. उपासकाध्ययन-कल्प 26, श्लोक 318 17. गृहकार्याणि सर्वाणि दृष्टिपूतानि कारयेत। द्रवद्रव्याणि सर्वाणि पटपूतानि योजयेत्।। - उपासकाध्ययन कल्प 26, श्लोक 321 18. निशायामश्न हेयमहिसाव्रतवृद्धये। मूलव्रतविशुद्धयर्थ यमार्थपरमार्थतः।। -सागारधर्मामृत, श्लोक 241 -29, उत्तरी सुन्दरवास उदयपुर-313001
SR No.538056
Book TitleAnekant 2003 Book 56 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2003
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy