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________________ अनेकान्त / 55/2 46 एच. पी. फेअर - चाइल्ड के अनुसार- 'समाज मनुष्यों का एक समूह है जो अपने कई हितों की पूर्ति के लिए परस्पर सहयोग करते हैं, अनिवार्य रूप से स्वयं को बनाये रखने व स्वयं की निरन्तरता के लिए। 2" 27 समाजवादी विचार उक्त समाज के लिए जन्मा जिसे समाज हित को सर्वोपरि माना। सन् 1827 ई. में प्रारम्भ हुआ यह शब्द आज एक विचारधारा बन चुका है और इसे व्यक्तिवाद, वर्गवाद के विरुद्ध प्रयुक्त किया जाता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के अनुसार " समाजवादी समाज एक ऐसा वर्गहीन समाज होगा जिसमें सब श्रमजीवी होंगे। इस समाज में वैयक्तिक सम्पत्ति के हित के लिए मनुष्य के श्रम का शोषण नहीं होगा। इस समाज की सारी सम्पत्ति सच्चे अर्थो में राष्ट्रीय अथवा सार्वजनिक सम्पत्ति होगी तथा अनर्जित आय और आय सम्बंधी भीषण असमानतायें सदैव के लिए समाप्त हो जायेंगी। ऐसे समाज में मानव जीवन तथा उसकी प्रगति योजनाबद्ध होगी और सब लोग सबके हित के लिए जीयेंगे। " आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज "समाजवाद" को विभिन्न दृष्टिकोणो से "मूकमाटी में रखते हैं; उनकी दृष्टि में यह 44 'अमीरों की नहीं गरीबों की बात है कोठी की नहीं 411 कुटिया की बात है । " अमीरी-गरीबी की खाई को चौड़ा करना समाजवाद नहीं, बल्कि समाजवाद तो इस खाई को पाटने में है। पीड़ा के अन्त से ही सुख का प्रारम्भ हो सकता है " पीड़ा की इति ही S„ सुख का अर्थ है। " चार वर्णों में समाज विभक्त है यथा- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । प्रारम्भ में यह व्यवस्था कर्मणा थी। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है कि "कम्मुणा बम्भणो होई कम्मुणा होई खत्तिओ ।
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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