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________________ 10 संस्थान से युक्त होते हुए भी शरीर से सुकुमार थे। ( इस प्रकार की योग्यता से सम्पन्न) भगवान् महावीर तीस वर्ष तक विदेहरूप में गृह में निवास करके -।" वही पृ. 377. अनेकान्त / 55/2 13. समणे भगवं महावीरे विदेहदिन्ने विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीसं वासाइं विदेहंसि - कल्पसूत्र - सूत्र - 110. पृ. 160 ( प्राकृत् भारती संस्करण) जयपुर श्रमण भगवान महावीर ज्ञातवंश के थे, ज्ञातवंश में चन्द्रमा के समान थे, विदेह थे, विदेहदिन्ना - त्रिशला माता के पुत्र थे, विशिष्ट कान्ति के धारक थे, विशिष्ट देह से अत्यन्त सुकुमार थे। वे तीस वर्ष तक गृहस्थाश्रम में निस्पृह रहकर -- -।" वही पृ. 161. 14. (क) अरहा णायपुत्ते भगवं वेसालीए वियाहिए। 44 नायपुत्ते नायकुलचंदे विदेहे कट्टु । - सूत्रकृतांग- 1/2/3/22. पृ. 178 (ब्यावर सं.) " इन्द्रादि देवों द्वारा पूजनीय (अर्हन्त) ज्ञातपुत्र तथा ऐश्वर्यादि गुण युक्त भगवान् वैशालिक महावीर स्वामी ने वैशाली नगरी में कहा था। (ख) " नायपुत्ते भगवं वेसालिए" - उत्तराध्ययन सूत्र, 6 / 18, पृ. 51. वीरायतन संस्करण, 1972. 66 "" 'ज्ञातपुत्र भगवान वैशालिक ( महावीर ) ।' चुर्णि - "णातकलप्पसूते सिद्धत्थखत्तियपुत्ते । " साध्वी चन्दना दर्शनाचार्य ने उक्त संस्करण में उक्त गाथा सूत्र के टिप्पण में पृ. 429 पर लिखा है - - " भगवान् महावीर का विशाला अर्थात् वैशाली (उपनगर - कुण्डग्राम) में जन्म होने से उन्हें वेसालिए वैशालिक कहा जाता है।" 15. अत्थेत्थ भरहवासे, कुण्डग्गामं पुरं गुणसमिद्धं । तत्थ य नरिन्दवसहो सिद्धत्थो नाम नामेण । -विमलसूरि (पहली शती ई.) पउमचरियं, 2/21. " इसी भरतक्षेत्र में गुण एवं समृद्धि से सम्पन्न कुण्डग्राम नाम का नगर
SR No.538055
Book TitleAnekant 2002 Book 55 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2002
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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